आज इस लेख के माध्यम से समझेंगे कि वितरण प्रणाली से जुड़े सभी प्रकार कि जानकारी आपको देंगे, जैसे कि:
Highlights:
- वितरण क्या है
- वितरण का अर्थ और परिभाषा
- साधन कीमत सिद्धान्त क्या है
- साधन कीमत सिद्धान्त के कार्य
- सीमांत उत्पादकता सिद्धान्त की आलोचनाएँ
वितरण क्या है (What is Distribution in Hindi):
वितरण अर्थशास्त्र का चौथा विभाग है सामान्य बोलचाल की भाषा में वितरण का अर्थ किसी वस्तु को विभिन्न व्यक्तियों के बीच बाँटने से लगाया जाता है, लेकिन अर्थशास्त्र में वितरण शब्द का बहुत ही व्यापक अर्थ में प्रयोग किया जाता है।
अर्थशास्त्र में वितरण से हमारा तात्पर्य समाज में उत्पादन के विभिन्न साधनों द्वारा उत्पन्न आय को पुनः इन्हीं साधनों के बीच वितरित करने की क्रिया से है आधुनिक समय में उत्पादन का कार्य भूमि, श्रम, पूँजी, साहस एवं संगठन इन पाँच साधनों के सहयोग से होता है
इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि इनके द्वारा उत्पन्न आय एवं सम्पत्ति को पुनः इन्हीं साधनों के बीच वितरित किया जाये।
अर्थशास्त्र में इसी क्रिया को वितरण कहते हैं। अर्थात् वितरण के अन्तर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि उत्पादन के विभिन्न साधन जिस धन अथवा सम्पत्ति का उत्पादन करते हैं,
उसे पुनः इन साधनों के बीच किस सिद्धांत के अनुसार वितरित किया जाता है, लेकिन यहाँ यह जानना आवश्यक है कि जब वितरण का अर्थ उत्पादन की मात्रा के वितरण से लेते हैं
तो इसका तात्पर्य यह नहीं कि उत्पादन के साधनों के बीच उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का वितरण किया जाता है, बल्कि उत्पादन के विभिन्न साधनों को उनका अंश मुद्रा के रूप में दिया जाता है
जैसे- लोहा व इस्पात कारखानों में कार्य करने वाले श्रमिकों को उनकी मजदूरी इस्पात के रूप में नहीं चुका कर मुद्रा के रूप में चुकाई जाती है। इस प्रकार उत्पन्न की गयी सम्पत्ति को उत्पादन के भिन्न-भिन्न साधनों के बीच विभाजित करने की क्रिया को ही वितरण कहते हैं ।
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वितरण का अर्थ और परिभाषा क्या है (Definition of Distibution in Hindi):
परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) प्रो. फेयरचाइल्ड के अनुसार, “उत्पादन के साथ-साथ उत्पादन का निरंतर प्रवाह देखने को मिलता है। उत्पादन समाज के अनेक सदस्यों तक उपभोग हेतु पहुँचाया जाता है । उत्पादन में इस बँटवारे को वितरण कहा जाता है ।” “
(2) प्रो. चैपमैन के शब्दों में, “वितरण का अर्थशास्त्र समाज द्वारा उत्पादित धन का उत्पादन के साथ के स्वामियों के बीच बँटवारे का अध्ययन है, जिन्होंने इस उत्पादन के निर्माण में भाग लिया है।”
(3) प्रो. विकस्टोड के अनुसार, “वितरण में उन सिद्धान्तों का विवेचन किया जाता है, जिनके किसी जटिल अथवा विषम औद्योगिक संगठन को संयुक्त उत्पत्ति का विभाजन उन व्यक्तियों में किया जाता है।
साधन कीमत सिद्धान्त क्या है?
नकोत सिद्धान्त का सम्बन्ध साधनों की सेवाओं (भूमि, श्रम, पूँजी, उद्यम) के लिए उन् विक्रेताओं को दी जाने वाली कीमत से है। इसमें मजदूरी की दरों, ब्याज की दरों, लगान तथा लाभ का किया जाता है।
साधन कीमत सिद्धान्त के कार्य:
साधन कीमत सिद्धान्त के निम्नलिखित दो मुख्य कार्य है-
(i) उत्पादन के साधनों का बंटवारा साधन कीमत सिद्धान्त विभिन्न उपयोगों में उत्पादन के साधनों के बंटवारे की कार्यविधि की व्याख्या करता है।
(ii) उत्पादन के साधनों के स्वामियों में मूल्य वृद्धि का वितरण साधन कीमत सिद्धान्त का कार्य इस बात की व्याख्या करना है कि उत्पादन के विभिन्न साधनों के स्वामियों, जैसे— भूमिपति, पूँजीपति श्रमिक तथा उद्यमों में कुल उत्पादन का वितरण किस प्रकार किया जाता है।
इस सिद्धान्त से ज्ञात होता है कि भू-स्वामी के लगान, श्रमिक की मजदूरी, पूँजीपति के ब्याज तथा उद्योग के लाभ का निर्धारण कैसे होता है। साधन कीमत के पृथक सिद्धान्त की अवधारणा मे कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, साधन कीमत के निर्धारण के लिए पृथक सिद्धान्त को कोई आवश्यकत नहीं है।
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उनके मतानुसार, साधन कीमत का निर्धारण ठीक उसी प्रकार होता है जिस प्रकार वस्तुओं की कीम का निर्धारण उनको माँग व पूर्ति के आधार पर होता है अर्थात् किसी साधन की कीमत का निर्धारण उसको म व पूर्ति के आधार पर हो किया जा सकता है।
लेकिन कुछ अन्य अर्थशास्त्रियों का विचार है कि साधनों की कीमत का निर्धारण वस्तुओं की कीमत के निर्धारण को भाँति नहीं किया जा सकता।
सीमांत उत्पादकता सिद्धान्त की आलोचनाएँ:
- साधन की सीमांत उत्पादकता ज्ञात करना कठिन है,
- उत्पत्ति के साधनों की विभाज्यता की
- मान्यता अवास्तविक है, उत्पत्ति के साधनों की एकरूपता की मान्यता अवास्तविक है
- पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता अवास्तविक है,
- पूर्ण रोजगार की मान्यता अवास्तविक है,
- उत्पत्ति के साधनों की पूर्ण गतिशीलता की मान्यता अवास्तविक है,
- यह सिद्धान्त केवल माँग की विवेचना करता है,
- असमान वितरण,
- दीर्घकाल में अधिक उपयुक्त,
- न्यायोचित नहीं ।

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