Bajar Kya Hai? 10 ऐसी बातें जो आपको पता होना चाहिए!

आज हम आपको ऐसे विषय के बारे में बतायेंगे जिसके बारे में आपको जानकारी जरुर होगी, इस टॉपिक पर महत्वपूर्ण बिंदु को कवर करेंगे:

  1. बाजार क्या है (Bajar Kya Hai in Hindi)
  2. बाजार का अर्थ (Bazar ka Arth)
  3. बाजार कि परिभाषा (Bajar Ki Paribhasha):
  4. बाजार का वर्गीकरण (Classification of Market in Hindi)

Bajar Kya Hai (बाजार क्या है):

सामान्य बोलचाल की भाषा में, Bajar शब्द का अर्थ उस स्थान विशेष से लगाया जाता है, जहाँ पर किसी वस्तु के क्रेता एवं विक्रेता एकत्रित होकर वस्तुओं के क्रय-विक्रय का कार्य करते हैं ]। इस प्रकार सामान्य अर्थ मैं बाजार के लिए निश्चित स्थान तथा खरीदने एवं बेचने वालों की उपस्थिति जरूरी है ।

बाजार का अर्थ (Bazar ka Arth):

अर्थशास्त्र में बाजार शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ (Bazar ka Arth) में किया जाता है। इस व्यषिक आर्थिक दृष्टिकोण के अनुसार बाजार के लिए किसी स्थान विशेष का होना आवश्यक नहीं है, बल्कि अर्थशास्त्र में जिस क्षेत्र तक वस्तुओं की माँग और पूर्ति है. समस्त क्षेत्र चतुओं का बाजार कहलाता है।

दूसरे शब्दों में, आर्थिक दृष्टि से सामान्यतया बाजार ‘का अर्थ उस सम्पूर्ण क्षेत्र से लिया जाता है, जिसमें उस वस्तु के क्रेता तथा विक्रेता फैले हुए हों और उनमें प्रतिस्पद्धात्मक सम्पर्क हो ।”

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बाजार कि परिभाषा (Bajar Ki Paribhasha):

Bajar ki Paribhasha कुछ निम्लिखित है:

1. कूनों के अनुसार:

“अर्थशास्त्री बाजार शब्द का अर्थ, किसी स्थान विशेष से नहीं लेते, जहाँ पर वस्तुएँ खरीदी एवं बेची जाती है बल्कि बाजार का अर्थ उस समस्त क्षेत्र से लेते हैं. जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं के बाँच इस प्रकार का स्वतंत्र सम्पर्क होता है कि एक वस्तु की कीमत को प्रवृत्ति सरलता से तथा शीघ्रता से समान होने की पायी जाती है.”

2. प्रो. सिजधिक के शब्दों में:

“बाजार व्यक्तियों के समूह या समुदाय को कहते हैं जिनके बीच इस प्रकार के पारस्परिक वाणिज्यिक संबंध हो कि प्रत्येक व्यक्ति को सुगमता से इस बात का पूर्ण ज्ञान हो जाये कि दूसरे व्यक्ति समय-समय पर कुछ वस्तुओं एवं सेवाओं का विनिमय किन मूल्यों पर करते हैं.”

3. एली के अनुसार:

“हम बाजार का अर्थ उस साधारण क्षेत्र से लगाते है जिसके अन्तर्गत किसी वस्तु विशेष पर मूल्य निर्धारित करने वाली शक्तियाँ सक्रिय होती है प्रो. चैपमेन के अनुसार, बाजार शब्द आवश्यक रूप से सदैव किसी स्थान की ओर संकेत नहीं करता बल्कि यह सदैव किसी वस्तु या वस्तुओं तथा क्रेताओं और विक्रेताओं की ओर संकेत करता है, जो प्रत्यक्ष रूप से प्रतियोगिता करते हैं.”

4. बेनाम के अनुसार:

“बाजार कोई भी यह क्षेत्र होता है, जिसमें क्रेता एवं विक्रेता प्रत्यक्ष अथवा व्यापारियों द्वारा एक-दूसरे के इतने निकट सम्पर्क में होते हैं कि बाजार के एक भाग में प्रचलित मूल्य दूसरे भाग में प्रचलित मूल्य को प्रभावित करते हैं.

उपर्युक्त परिभाषाओं में कूनों की परिभाषा सबसे अच्छी है, क्योंकि इसमें बाजार के समस्त तत्व उपस्थित हैं।

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Bajar Ki Visheshta (बाजार कि विशेषताएं):

(MAIN CHARACTERISTICS OF ELEMENTS OF MARKET) उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. एक क्षेत्र अर्थशास्त्र में बाजार शब्द का प्रयोग किसी क्षेत्र विशेष के लिए नहीं किया जाता है, बल्कि उस क्षेत्र से है जहाँ क्रेता और विक्रेता फैले हुए होते हैं तथा उनमें आपस में प्रतियोगिता होती है ।
  1. एक वस्तु – अर्थशास्त्र में जब हम बाजार शब्द का प्रयोग करते हैं तो एक हो प्रकार की वस्तुएँ होनी चाहिए, जैसे कपड़े का बाजार, चूड़ी का बाजार, सब्जी का बाजार, अनाज का बाजार आदि।
  2. क्रेता एवं विक्रेता क्रेताओं एवं विक्रेताओं की उपस्थिति बाजार के लिए आवश्यक है, क्योंकि क्रेता एवं विक्रेता दोनों ही बाजार के अभिन्न अंग होते हैं, चाहे उनको संख्या कितनी हो क्यों न हो। अतः क्रेता एवं विक्रेता में से किसी एक को अनुपस्थिति में बाजार की कल्पना नहीं की जा सकती है ।।
  1. स्वतंत्र प्रतियोगिता बाजार के लिए यह आवश्यक है कि क्रेताओं एवं विक्रेताओं के बीच स्वतंत्र प्रतियोगिता हो। दूसरे शब्दों में, सौदा करते समय किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं होना चाहिए
  2. एक मूल्य — बाजार में जब क्रेताओं एवं विक्रेताओं के बीच प्रतियोगिता होती है, वस्तुओं के मूल्यों में समान होने की प्रवृत्ति होती है। कीमतों में भिन्नता होने से माँग और पूर्ति की शक्तियों पुन- क्रियाशील होने लगती है और कीमत में फिर से समानता आती है।
  3. बाजार का पूर्ण ज्ञान बाजार में वस्तु का एक ही मूल्य हो, इसके लिए क्रेता-विक्रेता दोनों को हो बाजार का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। बाजार का अपूर्ण ज्ञान होने के कारण उसको वस्तुएँ उचित मूल्य पर प्राप्त होने में कठिनाई होती है।

बाजार का वर्गीकरण (Bajar Ke Prakar):

अर्थशास्त्रियों के द्वारा विभिन्न तत्वों के आधार पर बाजार का वर्गीकरण किया गया है। विभिन्न आधारों पर बाजार का वर्गीकरण निम्नांकित है—

क्षेत्र के आधार पर बाजार का वर्गीकरण:

क्षेत्र के आधार पर बाजार को मुख्य रूप से चार भागों में बाँटा जा सकता है-

1. स्थानीय बाजार: किसी वस्तु का क्रम एवं विक्रय एक निश्चित स्थान अथवा एक निश्चित क्षेत्र तक ही सीमित होता है तो उस वस्तु के बाजार को स्थानीय बाजार कहते हैं। इस बाजार में केवल उन्हीं वस्तुओं का क्रय-विक्र किया जाता है, जो प्रायः उस स्थान विशेष में पैदा होती हैं।

इनमें दो प्रकार की वस्तुएँ सम्मिलित होती हैं पहली शीघ्र नष्ट हो वाली वस्तुएँ जैसे फल, दूध, दही, तो इत्यादि तथा दूस जो अधिक स्थान घेरती है तथा भारी होती हैं, जैसे रेत, पत्थर इत्यादि ।

2. प्रादेशिक बाजार: जब किसी वस्तु का बाजार एक विशेष प्रदेश अथवा एक बड़े क्षेत्र तक सीमित होता है तो उस वस्तु के बाजार को प्रादेशिक बाजार कहा जाता है। प्रादेशिक बाजार के अन्तर्गत वस्तु को माँग तथा पूर्ति एक प्रदेश की सीमा तक फैली रहती है।

जैसे पड़ी और साफे का बाजार राजस्थान तथा पंजाब तक ही सीमित है। लाख की चूड़ियों का बाजार राजस्थान में, क्योंकि वहीं पर उसकी माँग अधिक है.

3. राष्ट्रीय बाजार: जब किसी वस्तु को माँग सम्पूर्ण देश में होती है तो उस वस्तु के बाजार को राष्ट्रीय बाजार कहते हैं

4. अन्तर्राष्ट्रीय बाजार: जब किसी वस्तु के क्रेता एवं विक्रेता समस्त विश्व में पाये जाते हैं तो ऐसी के बाजार को अनतर्राष्ट्रीय बाजार कहते हैं, जैसे सोना, चाँदी, गेहूँ कपास, पटसन आदि वस्तुओं का बाजार अन्तर्राष्ट्रीय होता है।

समय के आधार पर बाजार का वर्गीकरण:

  1. अति अल्पकालीन बाजार,
  2. अल्पकालीन बाजार,
  3. दीर्घकालीन बाजार,
  4. अति दीर्घकालीन बाजार।

3. प्रतियोगिता के आधार पर बाजार का वर्गीकरण

  1. पूर्ण प्रतियोगिता बाजार,
  2. अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार,
  3. एकाधिकारी बाजार ।

4. कार्य के आधार पर बाजार का वर्गीकरण

  1. विशिष्ट बाजार,
  2. मिश्रित बाजार,
  3. नमूनों द्वारा बाजार,
  4. श्रेणियों के आधार पर बाजार।

5. वैधानिकता के आधार पर बाजार का वर्गीकरण

  1. विशिष्ट बाजार,
  2. अल्पकालीन बाजार,
  3. दीर्घकालीन बाजार,
  4. अति दीर्घकालीन बाजार।

6. वस्तु की प्रकृति के आधार पर बाजार का वर्गीकरण (Classification of Market in Hindi)

  1. आज बाजार,
  2. स्कन्ध बाजार,
  3. धातु बाजार।

बाजार के विस्तार को प्रभावित करने वाले तत्त्व:

किसी वस्तु का बाजार संकुचित या विस्तृत हो सकता है। बाजार संकुचित उस समय होता है, जब वस्तु विशेष को माँग एक सीमित क्षेत्र में हो होती है। इसके विपरीत, जब वस्तु के क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है और वे एक बड़े क्षेत्र में फैले होते हैं, तो उसे विस्तृत बाजार कहते हैं।

किसी बाजार के विस्तार को प्रभावित करने वाले तत्वों को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(अ) वस्तु के गुण या विशेषताएँ (Characteristics of the Commodity)

किसी वस्तु के विस्तृत बाजार के लिए उस वस्तु में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए—

1. सर्वव्यापक मांग: बाजार के विस्तृत होने के लिए वस्तु की माँग का व्यापक होना अनिवार्य है जिस वस्तु की माँग जितनी अधिक व्यापक होगी. उस वस्तु का बाजार उतना ही विस्तृत होगा।

उदाहरण के लिए गेहूँ, चावल, कपास, जूट, सोना-चाँदी, टी. वी., रेडियो आदि की मांग विश्वव्यापी है। इसके विपरीत, जिस वस्तु की माँग जितनी ही कम होगी, उसका बाजार भी उतना ही संकुचित होगा । उदाहरण के लिए पगड़ी, धोती, लाख की चूड़ी, पाजामा आदि का बाजार

2. वहनीयता: बाजार के विस्तार के लिए वस्तु में वहनीयता का गुण होना आवश्यक है । प्रायः जो वस्तुएँ एक स्थान से दूसरे स्थान को आसानी से साबी और ले जायी जा सकती हैं, उन वस्तुओं का बाजार उतना हो विस्तृत होता है ।

उदाहरण के लिए सोना, चाँदी, हीरे जवाहरात आदि। वहाँ दूसरी और अधिक भार तथा कम कीमत वाली वस्तुओं का बाजार संकीर्ण होता है। उदाहरण के लिए ईंट, पत्थर, रेत आदि ।

देश की आंतरिक दशाएँ (Internal Conditions of Country) देश की आंतरिक दशाओं का भी वस्तु के बाजार के विस्तार पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है-

  1. परिवहन एवं संचार के साधन: यदि देश में परिवहन एवं संचार के साधन पूर्णरूप से विकसित हैं तो उस देश में वस्तुओं का बाजार विस्तृत होगा, क्योंकि वस्तुओं को कम लागत पर शीघ्रता तथा सुगमता से एक. स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जा सकता है। इसी प्रकार टेलीफोन तार, रेडियों आदि संचार वाहन के साधन भी बाजार को विस्तृत करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं ।
  2. श्रम का विभाजन: श्रम विभोजन से बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। उत्पादन लागत में कमी आती हैं। सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तुओं का उत्पादन भी आसानी से कर लिया जाता है और वस्तुएँ भी आकर्षक बनती हैं। इन सब प्रामाणिक बातों क कारण वस्तु के बाजार का विस्तार होता है ।
  3. सुदृढ़ बैंकिंग प्रणाली: यदि देश में बैंकिंग सुविधा का पर्याप्त विकास हो चुका है तो देश में वस्तु का बाजार सामान्य रूप से अधिक विस्तृत होगा, क्योंकि इन सुविधाओं को सहायता से व्यापारिक लेन-देन की काफी सरल बनाया जा सकता है ।

Conclusion:

तो आज आपने समझा कि Bajar kya hai, Bajar Ke Prakar Kya Hai उम्मीद करते है कि हमारे द्वारा लिखा गया यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा, अगर आपके मन में इस टॉपिक से जुडी कोई भी सवाल है तो हमें कमेंट करके जरुर बताएं

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