Bima Kya Hai (बीमा क्या है), परिभाषा, प्रकार, सिद्दांत, कार्य, लाभ

मानव जीवन और पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार की जीव और वस्तुएं अनिश्चित है यानी कि इनका आज नहीं तो कल नष्ट होना संभव है.

जैसे कि मानव का संपत्ति आज उसके पास है हो सकता है कि कल उसके पास वह संपत्ति ना रहे या ऐसा भी हो कि मनुष्य की मृत्यु हो जाए और उसकी लाखों संपत्ति ढेर बन जाए। इन सभी समस्याओं का समाधान है बीमा।

आज हम आपको इस आर्टिकल की मदद से बताएंगे कि Bima Kya Hai बीमा क्या है यह कितने प्रकार के होते हैं? बीमा कि परिभाषा क्या है, इसके सिद्दांत और लाभ और भी अन्य तथ्यों के बारे में जानकारी देंगे:

चलिए सबसे पहले समझते हैं कि बीमा क्या है?

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Bima Kya Hai बीमा क्या है:

Bima का मतलब एक ऐसे अनुबंध से होता है जिसमें एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को एक निश्चित राशि देकर उसके जोखिम का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेता है।

बीमा कंपनी के अनुसार जो भी व्यक्ति बीमा कराता है, उसे निश्चित अवधि की समाप्ति या किसी घटना की घटित होने पर एक निश्चित धनराशि देने का वचन दिया जाता है जिसके बदले में वह व्यक्ति बीमा कराने वाली कंपनी को बीमा कराने के लिए एक निश्चित शुल्क अदा करता है।

ऐसे में तो हम मानव जीवन को मृत्यु से होने वाली क्षति की पूर्ति तो नहीं कर सकते परंतु उनके परिवार को कुछ आर्थिक सहायता अवश्य प्रदान कर सकते हैं.

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो संपत्ति की क्षति से होने वाली हानि को पूरी तरह से समाप्त करने या फिर हानि को कम करने का एक विशेष माध्यम है जिसे हम बीमा या Insurance कहते हैं‌‌।

बीमा की परिभाषाएं (Bima Ki Paribhasha):

बीमा की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

1. सर विलियम बेवरिज के अनुसार, “बीमा जोखिमों के सामूहिक वहन को कहते हैं।

2. न्यायाधीश टिण्डल के अनुसार, “बीमा एक अनुबन्ध है, जिसमें बीमक द्वारा एक निश्चित घटना के घटित होने से उत्पन्न जोखिम वहन करने के प्रतिफल में बीमित एक निश्चित धनराशि (शुल्क) अदा करता है।”

1. दो पक्षकार (Two Parties):

Bima insurance के अंतर्गत दो पक्ष आते हैं एक बीमा करने वाला जिसे हम बीमाकर्ता या बीमक कहते हैं तो वही दूसरी तरफ बीमा करवाने वाले को बीमित या फिर बीमाधारी कहते हैं।

2. पूर्ण सद्भावना पर आधार:

बीमा की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह पूर्ण सद्भावना पर आधारित होता है यानी कि बीमाधारी बीमा से संबंधित सभी प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारी स्वयं बीमा कंपनी को दे सकता है।

जैसे कि अगर कोई व्यक्ति किसी बीमारी से पीड़ित है तो वह इस बात की जानकारी स्वयं ही बीमा कंपनी को दे सकता है। इस प्रकार बीमा कंपनी सभी समस्याओं की जांच करता है और इसे ही पूर्ण सद्भावना का आधार कहते हैं।

3. सहकारी व्यवस्था पर आधार:

हम सभी जानते हैं कि सहकारी व्यवस्था का मूल मंत्र है कि प्रत्येक सभी के लिए और सभी प्रत्येक के लिए। सहकारी व्यवस्था में लोग सभी के हितों के लिए स्वेच्छा से एकत्रित होते हैं और कार्य करते हैं।

बीमा व्यवस्था भी इसी सिद्धांत पर आधारित है, इस सिद्धांत पर लोग बीमा कंपनी के पास थोड़ा-थोड़ा राशि जमा करके एक बड़ा कोष का निर्माण करते हैं।

और यदि भविष्य में किसी सदस्य को हानि होती है तो क्षतिपूर्ति हेतु एकत्रित कोष में से की जाती है जिसके कारण बीमा एक सहकारी व्यवस्था ही है।

4. जोखिम से मुक्ति:

जैसा कि हमने आपको बताया कि Bima एक ऐसी व्यवस्था है जो मानव जीवन और उसकी संपत्ति को आने वाली संभावित जोखिमों से मुक्ति प्रदान करने में सक्षम होती है।

5. संभावित हानि से मुक्ति:

यह आने वाली संभावित हानि को एक पक्ष को हस्तांतरित कर देता है।

6. प्रीमियम का भुगतान:

आपको बता दें कि जो भी बीमा कंपनी होती है वह बीमा करने वाले के जोखिमों का उत्तरदायित्व भुगतान की गई धनराशि के बदले लेती है जिसे हम प्रीमियम के रूप में जानते हैं।

7. घटना के घटित होना:

किसी भी Bima करवाने के उद्देश्य किसी घटना के घटित होने पर ही पूरा होता है मतलब की किसी दावे की राशि का भुगतान तभी होगा जब किसी एक निश्चित घटना घटित हो जाएगी। संपत्ति के बीमे की दशा में उसका क्षतिग्रस्त होना ही घटना का घटित होना कहलाता है।

8. सुरक्षा एवं विनियोग:

Jeevan Bima में सुरक्षा और विनियोग दोनों प्रकार के तत्वों का शामिल होना अत्यंत आवश्यक होता है और अन्य शेष बीमा में केवल और केवल सुरक्षा तत्व शामिल होते हैं।

9. स्वामित्व:

बीमा की एक और खास बात यह है कि बीमा करवाने के लिए आपको बीमा पर स्वामित्व होना अनिवार्य नहीं होता है अर्थात एक मालिक अपने माल का बीमा तो करवा सकता है परंतु कुछ विशेष परिस्थितियों में वह ऐसे माल का भी बीमा करवा सकता है जिसका वह मालिक या स्वामी नहीं है।

10. बीमा एक अनुबंध है:

बीमा को एक अनुबंध के रूप में जाना जाता है जिसकी वजह से इसमें वैद्य अनुबंध की सभी विशेषताएं शामिल होती है।

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बीमा के प्रकार क्या है (Types of Insurance):

बीमा मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:

  1. जीवन बीमा
  2. सामान्य बीमा: अग्नि बीमा, चोरी बीमा, सामुद्रिक बीमा, विविध और स्वास्थ्य बीमा। ‍

जीवन बीमा (Life Insurance):

जीवन बीमा (Jeevan Bima) व्यवसाय का सबसे प्रचलित प्रकारों में से एक है जिसमें कोई भी व्यक्ति अपने जीवन का बीमा करवा सकता हैं।

जीवन बीमा में बीमा करवाने वाले व्यक्ति को एक निश्चित प्रीमियम के रूप में भुगतान करना पड़ता है।

जिसके परिणाम स्वरूप एक निश्चित अवधि के बाद बीमा करवाने वाला व्यक्ति अगर जीवित रहता है तो बीमा कंपनी स्वयं उसे पूर्व निश्चित रकम प्राप्त होती है।

और यदि उसकी मृत्यु हो जाती है तो उसके उत्तराधिकारी कोई यह निश्चित रकम प्राप्त होगी। जीवन बीमा में सुरक्षा और विनियोग दोनों प्रकार के गुण पाए जाते हैं।

सामान्य बीमा:

जीवन बीमा के अलावा भी और भी कई प्रकार की बीमा मौजूद है जोकि सामान्य बीमा के अंतर्गत आते हैं। इस बीमा में हम अपने कार, गाड़ी, घर के सामान, माल के स्टॉक इत्यादि चीजों का बीमा करवा सकते हैं। इनमें मुख्य रूप से शामिल है:

  1. अग्नि बीमा
  2. चोरी बीमा
  3. सामुद्रिक बीमा
  4. विविध और स्वास्थ्य बीमा।

अग्नि बीमा:

अग्नि बीमा के अंतर्गत बीमा कंपनी एक निश्चित प्रीमियम लेकर बीमा करवाने वाले को यह आश्वासन देती है कि यदि उसकी संपत्ति को आग से किसी भी प्रकार की क्षति होती है तो यह बीमा की राशि से उसकी क्षतिपूर्ति करेगा।

इसके साथ ही अग्नि बीमा में एक और कंडीशन यह होती है कि यदि बीमा अवधि के दौरान अग्नि से किसी भी प्रकार की कोई क्षति नहीं होती है तो बीमा अवधि पूरी होने पर बीमा करवाने वाले को कुछ भी प्राप्त नहीं होगा।

जिसकी वजह से इस बीमा में केवल सुरक्षा के तत्व ही शामिल होते हैं और विनियोग के तत्व नहीं।

चोरी बीमा:

चोरी बीमा के अंतर्गत बीमा कंपनी बीमा करवाने वाले की संपत्ति को चोरी से होने वाली क्षति से सुरक्षा प्रदान करने में मदद करता है, इस प्रकार की बीमा का कॉन्ट्रैक्ट प्रायः 1 वर्ष की अवधि का होता है।

इसमें भी यदि बीमा करवाने वाले की संपत्ति की चोरी से किसी भी प्रकार की कोई क्षति नहीं होती है तो अवधि पूरी होने पर उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होगा, जिसकी वजह से इस बीमा में भी सुरक्षा के तत्व ही शामिल होते हैं ना कि विनियोग के तत्व।

सामुद्रिक बीमा:

यह बीमा अन्य बीमा की तुलना में थोड़ा सा अलग होता है, जैसे कि हम सभी जानते हैं कि विदेशों से व्यापार समुद्री मार्गो से भी किया जाता है और समुद्री मार्ग से जहाज और माल दोनों का आवागमन ही पूर्णतः असुरक्षित रहते हैं।

यदि कोई भी एक जहाज क्षतिग्रस्त या नष्ट हो जाता है तो इससे लगभग करोड़ों रुपए की संपत्ति भी नष्ट हो जाती है जिसकी वजह से काफी ज्यादा नुकसान होता है।

इसी प्रकार के नुकसान से बचाने के लिए सामुद्रिक बीमा की मदद ली जाती है, और इसमें भी केवल और केवल सुरक्षा के तत्व ही नियमित होते हैं ना कि विनियोग के तत्व।

विविध बीमा और स्वास्थ्य बीमा:

अनेक प्रकार के छोटे-छोटे जोखिमों से सुरक्षा करने वाले के लिए ली गई बीमा को हम विविध बीमा के रूप में जानते हैं इस बीमा के अंतर्गत दुर्घटना बीमा, कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति का स्वास्थ्य बीमा आदि आता है।

Bima Kya Hai in Hindi और इसके प्रकारों को बारे में जानने के बाद चलिए अब समझते हैं कि बीमा के मूलभूत सिद्धांत क्या है?

बीमा के सिद्धांत क्या है? (Bima Ke Siddhant in Hindi):

बीमा जो है वह दो पक्षों के मध्य होने वाला कॉन्ट्रैक्ट या फिर अनुबंध होता है अतः इसमें एक वैद्य रूप से अनुबंध का होना अत्यंत आवश्यक होता है।

जैसे कि बीमा का प्रस्ताव और उसकी स्वीकृति कैसे करें, पक्षकारों के मध्य अनुबंध को करने की क्षमता, पक्षकारों की सुरक्षा पूर्ण सहमति आदि शामिल होती है।

इसके अलावा भी बीमा में कुछ और भी आवश्यक तत्व और सिद्धांतों को शामिल किया गया है और इसका पालन करना अत्यंत आवश्यक होता है.

1. परम विश्वास का सिद्धांत:

Bima के अनुबंध को वैधानिक रूप देने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि बीमा कराने वाले और बीमा करने वाले दोनों के मध्य सद्भावना से कार्य किया जाए।

इसका मतलब है कि Bima कराने वाले को बीमा से संबंधित किसी भी बात को छुपाकर नहीं रखना चाहिए यदि कोई बात गोपनीय रखी गई है और बाद में वास्तविकता का पता लग जाता है तो यह अनुबंध व्यर्थ माना जाएगा।

उदाहरण के लिए बीमा करवाने वाला बीमा कंपनी को यह नहीं बताता है कि उसके परिवार में सभी सदस्य किसी एक विशेष रोग से पीड़ित है यदि वह इस बात को गुप्त रखता है कि उसके परिवार में कोई भी व्यक्ति रोगी नहीं है तो इससे से विश्वास काम नहीं किया जाएगा और यदि बाद में बीमा कंपनी को इस बात की जानकारी हो जाती है तो बीमा कंपनी अपना अनुबंध समाप्त भी कर सकती है।

ठीक इसी प्रकार यह सब पहलू भी बीमा कंपनी के ऊपर भी लागू होती है बीमा कंपनी को भी अपने सभी तथ्यों को स्पष्ट कर देना चाहिए यदि भविष्य में किसी मिथ्या का वर्णन होता है तो बीमाधारी अपने अनुबंध को समाप्त कर सकते हैं।

2. बीमा योग्य हित का सिद्धांत:

बीमा के अनुबंधों के लिए यह जरूरी है कि बीमा करवाने वाले का बीमे की वस्तु और उसके जीवन में पूर्ण हित निहित हो। इसका मतलब यह है कि यदि बीमित वस्तु या जीवन पर किसी भी प्रकार की छाती होती है तो बीमा कराने वाला व्यक्ति को उसे आर्थिक हानि उठानी पड़ती है और उसे सुरक्षा के रूप में आर्थिक लाभ होता है।

दूसरे शब्दों में कहे तो बीमा करवाने वाला और बीमा को विषय वस्तु के मध्य ऐसा संबंध होना चाहिए की विषय वस्तु की सुरक्षा से बीमा करवाने वाले को लाभ हो और विषय वस्तु की असुरक्षा से हानि हो।

3. क्षतिपूर्ति का सिद्धांत:

क्षतिपूर्ति का सिद्धांत जीवन बीमा के अलावा सभी बीमा पर लागू होता है, इसका मुख्य कारण यह है कि जीवन बीमा में क्षति का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है परंतु अन्य प्रकार के बीमा में क्षतिपूर्ति का अनुमान लगाया जा सकता है।

इसका मुख्य उद्देश्य बीमा करवाने वाले का उसकी वास्तविक हानि का क्षतिपूर्ति करना होता है, इस अनुबंध से किसी भी प्रकार का लाभ नहीं अर्जित किया जा सकता यह केवल सुरक्षा प्रदान करने में सहायक होते हैं।

उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति ₹30000 माल का बीमा 50,000 रुपए में करता है और सारा माल क्षतिग्रस्त हो जाता है तो बीमा कंपनी केवल वास्तविक हानि यानी कि केवल ₹30000 का ही भुगतान करेगी।

इसके साथ ही यदि कोई व्यक्ति ₹30000 का माल का बीमा ₹10000 में करता है और सारा माल क्षतिग्रस्त हो जाता है तो ₹10000 का ही भुगतान करेगी।

4. आश्वासन का सिद्धांत:

इसका मतलब Bima करवाने वाला के द्वारा बीमा करने वाले को दिए गए वचन से है, जो कि पूरा ना होने पर बीमाकर्ता अपना अनुबंध निरस्त कर सकता है।

यह आश्वासन भी दो प्रकार के होते हैं:

  1. स्पष्ट आश्वासन
  2. गर्भित आश्वासन

स्पष्ट आश्वासन:

इस प्रकार के आश्वासन को स्पष्ट रूप से बीमा पॉलिसी पर उल्लेख कर दिया जाता है उदाहरण के लिए: जहाज का बीमा करवाने वाला व्यक्ति कोई आश्वासन देना होगा कि वह जहाज को किसी विशेष क्षेत्र की बंदरगाह में लेकर नहीं जा सकता।

गर्भित आश्वासन:

इस प्रकार के आश्वासन का उल्लेख भले ही बीमा पॉलिसी पर स्पष्ट रूप से न किया गया हो परंतु उनका पालन करना अनिवार्य होता है उदाहरण के लिए जहाज ऐसी समुद्री मार्ग का उपयोग करेगी जो उसके लिए उपयुक्त हो।

5. अंशदान का सिद्धांत:

यदि कोई व्यक्ति अपनी किसी एक वस्तु का बीमा अलग-अलग कंपनियों के द्वारा करवा लेता है तो यह कदापि नहीं है कि उस वस्तु की क्षतिपूर्ति सभी कंपनियों के द्वारा अलग-अलग की जाएगी हालांकि क्षतिपूर्ति सभी कंपनियों के द्वारा ही की जाएगी परंतु एक विशेष अनुपात में किया जाएगा और भुगतान की राशि कुल हानि से अधिक नहीं हो सकती है।

जैसे कि यदि कोई व्यक्ति 10 लाख के मकान का बीमा तीन बीमा कंपनियां क्रमशः A, B, C के द्वारा करवाती है और बीमा की राशि ₹200000, ₹300000 और ₹500000 है‌।

तो इस प्रकार क्षतिपूर्ति होने पर तीनों कंपनियां कुल हानि का अनुपात 1:2:3 में सहन करेगी। इस सिद्धांत के अनुसार कोई व्यक्ति अपनी हानि की क्षतिपूर्ति तो कर सकता है परंतु वह लाभ अर्जित नहीं कर सकता है और यह सिद्धांत जीवन बीमा पर लागू नहीं होता है।

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6. अधिकार समर्पण का सिद्धांत:

अधिकार समर्पण का सिद्धांत क्षतिपूरक बीमा जैसे कि अग्नि और सामुद्रिक बीमा पर लागू होता है इस सिद्धांत के अनुसार जब कोई बीमा कंपनी क्षतिग्रस्त संपत्ति से संबंधित दावे का भुगतान कर देता है तो क्षतिग्रस्त संपत्ति पर बीमा कंपनी का अधिकार हो जाता है।

उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति अपना मकान का बीमा ₹100000 में करता है और उसका मकान आग लगने की वजह से पूरी तरीके से नष्ट हो जाता है तो ऐसी स्थिति में बीमा कंपनी बीमा करवाने वाले को मुआवजे के तौर पर ₹100000 का भुगतान करती है परंतु मकान के अवशेषों तथा मलबों पर बीमा कंपनी का अधिकार होता है।

7. हानि को न्यूनतम करने का सिद्धांत:

इस सिद्धांत के अनुसार बीमा धारी का यह कर्तव्य है कि वह हानि को जितना हो सके कम करें यानी कि क्षति में होने वाली हानि को कम करने का प्रयास करें।

उदाहरण के लिए: यदि बीमा धारी ने अपने किसी गोदाम को बीमा करवाया है परंतु यदि उसमें आग लग जाती है तो उसका कर्तव्य है कि वह सबसे पहले उस आग को बुझाने का प्रयत्न करें जैसे कि दमकल विभाग को सूचित करें इत्यादि कार्य करें ताकि आग पर काबू पा सके।

उसे यह बिल्कुल भी नहीं सोचना चाहिए कि उसने गोदाम का तो बीमा करवा रखा है तो उसे अब डर किस बात का बीमा कंपनी गोदाम के क्षतिपूर्ति की पैसे तो देगी ही।

8. निकटतम कारण का सिद्धांत:

सिद्धांत के अनुसार बीमा हुई संपत्ति के संबंध में बीमा पत्र में लिखे कारणों में हुई हानियों के पूरा करने का उत्तरदायित्व बीमा कंपनियों का होता है

जैसे कि कुछ समुद्री हानियां ऐसी भी होती है जिनके लिए जिम्मेदार केवल जहाज बनाने वाली कंपनियां होती है। कुछ के लिए बीमा कंपनी और तो वही कुछ के लिए माल का स्वामी।

समुद्री संकट से उत्पन्न यह हानि का उत्तरदायित्व के पक्ष में होगा इसका निर्णय निकटतम कारण किस सिद्धांत पर आधारित होता है।

बीमा के सिद्धांत Bima Ke Siddhant के बारे में समझने के बाद अब समझते हैं कि बीमा के कार्य Bima Ke Karya क्या है?

बीमा के कार्य क्या है (Bima Ke Karya):

बीमा के विभिन्न कार्य है:

  1. निश्चिता प्रदान करना
  2. सुरक्षा प्रदान करना
  3. जोखिमों को बांटना
  4. पूंजी निर्माण में सहायक होना।
निश्चिता प्रदान करना:

किसी भी प्रकार के जोखिम से हमें कुछ ना कुछ हानि होने की संभावना होती है परंतु बीमा होने की वजह से हमें जोखिमों से सुरक्षित करता है। हमें यह तो ज्ञात नहीं होता है कि हानि कब होगी और किस समय होगी।

बीमा (Insurance) इन्हीं सभी अनिश्चिताओं को दूर करता है और बीमा होने की वजह से राशि प्राप्त होती है जिसके वजह से बीमाकार भी सुनिश्चितता के लिए प्रीमियम लेता है।

सुरक्षा प्रदान करना:

बीमा का एक और मुख्य कार्य होता है कि वह सुरक्षा भी प्रदान करता है, भले ही बीमा किसी जोखिम या घटना को दो नहीं रोक सकता परंतु उससे होने वाली हानियों की क्षतिपूर्ति जरूर कर सकता है।

जोखिमों को बांटना:

यदि कोई जोखिम वाली घटनाएं घटित हो जाती है तो इससे होने वाली हानियों को भी वह सभी व्यक्ति बांट लेते हैं जिन्हें इन जोखिमों का सामना करना पड़ता है। सभी बीमाकृत सदस्यों के रूप में प्रीमियम प्राप्त करते हैं।

पूंजी निर्माण में सहायक होना:

बीमा कराने की वजह से प्रीमियम के रूप में जो धनराशि एकत्रित होती है उसे विभिन्न प्रकार के योजनाओं में लगाया जा सकता है जिससे आय में वृद्धि होती है।

बीमा के लाभ बताइए (Bima ke Labh Bataiye):

Bima Ke Labh का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है, बीमा के जरिए हम हानियों को न्यूनतम कर सकते हैं आज बीमा व्यवसाय काफी तीव्र गति से बढ़ती जा रही है और इससे प्राप्त होने वाले लाभ भी काफी तीव्र गति से बढ़ रही है.

बीमा के लाभ Bima ke Fayde कुछ इस प्रकार है:

  1. सुरक्षा प्रदान करना
  2. विनियोग का तत्व
  3. जोखिम का वितरण
  4. ऋण की सुविधा
  5. बचत को प्रोत्साहन
  6. आर्थिक विकास में सहायक
  7. रोजगार में वृद्धि
  8. आयकर में छूट।
Bima ke Labh

सुरक्षा प्रदान करना:

बीमा करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि यह हमें सुरक्षा प्रदान करता है, एक व्यक्ति जीवन बीमा करा कर अपने भविष्य की बहुत सारी चिंताओं से मुक्त हो सकता है ठीक इसी प्रकार एक व्यवसायी भी अपने गोदाम, अपने सामान वह अन्य चीजों का बीमा करा कर भविष्य में होने वाले संभावित क्षति से मुक्ति पा सकता है।

विनियोग का तत्व:

जैसे कि हमने आपको बताया कि जीवन बीमा में सुरक्षा तत्व के साथ-साथ विनियोग के तत्व भी पाए जाते हैं यानी कि इसमें लाभ प्राप्त होता है इसमें प्रीमियम की राशि बीमा कंपनी के पास जमा होती रहती है।

पॉलिसी की अवधि पूरी होने के बाद बीमा धारी के जीवित रहने पर पॉलिसी की राशि बोनस सहित वापस कर दी जाती है, यह बोनस राशि प्रीमियम की जमा राशि की तरह ब्याज होती है।

जोखिम का वितरण:

Bima में खास बात यह होती है कि इसमें जोखिमों का वितरण अनेक व्यक्तियों में हो जाता है जैसे कि मान लिया जाए कोई एक बीमा कंपनी है जिसके पास अनेक व्यक्ति प्रीमियम राशि की बीमा जमा करवाते हैं।

यह प्रीमियम राशि एक बहुत बड़े कोष में एकत्रित किया जाता है जब भी किसी भी बीमाधारी को हानि होती है तो इस एकत्रित कोष में से उसे भुगतान कर दिया जाता है, जिससे कि हानि की रकम का भार किसी एक व्यक्ति पर ना पडकर सभी व्यक्तियों पर समान रूप से बट जाता है।

ऋण की सुविधा:

आजकल बीमा के जरिए ऋण की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति अपने किसी वस्तु का बीमा करता है, तो उसमें सुरक्षा के तत्व शामिल हो जाते हैं जिससे बीमा कंपनी उस वस्तु को बंधक रखकर आसानी से ऋण दे देती है।

बचत को प्रोत्साहन:

बीमा अनुबंध में लेकिन इसी समय के बाद बीमा की किस्त जमा करनी होती है यदि कोई निश्चित समय पर बीमा की किससे को जमा नहीं करता तो उस पर जुर्माना लगने यहां तक की पॉलिसी जब्त होने का डर बना रहता है।

किस्त की अनिवार्यता को देखते हुए प्रत्येक बीमा जमा करने वाला किस्त का भुगतान करने के लिए बचत को प्रोत्साहन देता है।

आर्थिक विकास में सहायक:

बीमा देश के आर्थिक विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है बीमा कंपनी के जरिए प्रीमियम के रूप में एक बहुत ही बड़ी मात्रा में धनराशि प्राप्त होती है एकत्रित धनराशि को बड़ी बड़ी कंपनी और उद्योगों में विनियोग कर सकते हैं जिससे कि देश के आर्थिक विकास में मदद मिलती है।

रोजगार में वृद्धि:

बीमा व्यवसाय में वृद्धि होने की वजह से अच्छे-अच्छे रोजगार में भी वृद्धि होती नजर आ रही है बीमा व्यवसाय की वजह से विभिन्न प्रकार की पदों पर लाखों लोग कार्यरत है जिससे कि देश में बेरोजगारी की एक व्यापक समस्या को हल करने में भी सहायता मिल रही है।

आयकर में छूट:

आपको बता दें कि जो भी बीमाधारी होता है और जो राशि प्रीमियम के रूप में देता है उसे एक निश्चित सीमा पर आयकर विभाग से विशेष छूट मिलती है।

इंश्योरेंस और एश्योरेंस में अंतर (Insurance aur Assurance mein antar):

Insurance aur Assurance mein antar प्रायः इन दोनों शब्दों को पर्यायवाची शब्दों के रूप में उपयोग किया जाता है परंतु इनके अर्थ एक दूसरे से बिल्कुल ही भिन्न होते हैं:

चलिए इन दोनों के बीच के अंतर को समझते हैं:

Difference between insurance and assurance in Hindi:

आधार InsuranceAssurance
संबंध इसका मुख्य संबंध अग्नि और सामुद्रिक बीमा से होता है। इसका मुख्य संबंध जीवन बीमा से होता है।
क्षतिपूर्ति इसके अंतर्गत क्षतिपूर्ति का भुगतान और विशेष घटना के घटित होने पर ही किया जाता है।इसके अंतर्गत क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाता है फिर चाहे घटना घटित हो या ना हो।
प्रकृति जब जोखिम की प्रकृति अनिश्चित होती है तभी इसका प्रयोग किया जाता है।जब जोखिम निश्चित प्रकृति का हो तभी इसका प्रयोग किया जाता है।
दावे कि क्षतिपूर्तिबीमाधारी के दावे में क्षतिपूर्ति का होना आवश्यक है।बीमाधारी के दावे में क्षतिपूर्ति का होना आवश्यक नहीं है।
Conclusion:

इस आर्टिकल में आपने समझा कि Bima Kya Hai in Hindi और बीमा से सम्बन्धित सभी प्रकार कि जानकारी आपको समझ आई होगी.

FAQ:

बीमा क्या है यह कितने प्रकार के होते हैं?

संपत्ति की क्षति से होने वाली हानि को पूरी तरह से समाप्त करने या फिर हानि को कम करने का एक विशेष माध्यम है जिसे हम बीमा या Insurance कहते हैं‌‌।

यह मुख्य रूप से 2 प्रकार के होते है:

1. जीवन बीमा
2. सामान्य बीमा: अग्नि बीमा, चोरी बीमा, सामुद्रिक बीमा, विविध और स्वास्थ्य बीमा। ‍

बीमा के कार्य क्या है?

बीमा के विभिन्न कार्य है:
1. निश्चिता प्रदान करना
2. सुरक्षा प्रदान करना
3. जोखिमों को बांटना
4. पूंजी निर्माण में सहायक होना।

बिमा का मतलब क्या होता है?

Bima का मतलब एक ऐसे अनुबंध से होता है जिसमें एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को एक निश्चित राशि देकर उसके जोखिम का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेता है। बीमा कंपनी के अनुसार जो भी व्यक्ति बीमा कराता है, उसे निश्चित अवधि की समाप्ति या किसी घटना की घटित होने पर एक निश्चित धनराशि देने का वचन दिया जाता है जिसके बदले में वह व्यक्ति बीमा कराने वाली कंपनी को बीमा कराने के लिए एक निश्चित शुल्क अदा करता है।

बीमा की विशेषता क्या है?

बीमा कि विशेषता कुछ इस प्रकार है:
1. सुरक्षा प्रदान करना
2. विनियोग का तत्व
3. जोखिम का वितरण
4. ऋण की सुविधा
6. बचत को प्रोत्साहन
7. आर्थिक विकास में सहायक
8. रोजगार में वृद्धि
9. आयकर में छूट।

भारत की पहली बीमा कंपनी कौन है?

भारत की पहली बीमा कंपनी ओरिएंटल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी थी, जिसे कोलकाता में 1818 में स्थापित की गई, इसके बाद साल 1823 में बॉम्बे लाइफ़ एश्योरेंस कंपनी और 1829 में मद्रास इक्वेटिव आश्वासन कंपनी की शुरुआत हुई. इसके बाद साल 1912 में भारतीय जीवन बीमा कंपनियां का अधिनियम पारित किया गया था, जिसने बीमा को सुचारू रूप से संचारित किया

दुनिया की सबसे पहली जीवन बीमा कंपनी कौन सी है?

दुनिया की सबसे पहली जीवन बीमा कंपनी ओरिएंटल लाइफ इंश्योरेंस (Oriental Life Insurance) है, जिसकी शुरुआत साल 1818 में इंग्लैंड से हुयी थी.

दुनिया की सबसे बड़ी बीमा कंपनी कौन सी है?

दुनिया की सबसे बड़ी बीमा कंपनी संपत्ति के लिहाज से चीन की इंश्योरेंस कंपनी पिंग एन इंश्योरेंस है जिसकी सम्पति 1.38 ट्रिलियन डॉलर है इसके बाद जर्मनी की एलायंज एसई 1.27 ट्रिलियन डॉलर और फ्रांस की एक्सा एसए के पास 965 बिलियन डॉलर की संपत्ति है।

भारत की सबसे बड़ी बीमा कंपनी कौन सी है?

भारत की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) है, एलआईसी कि शुरुआत संसद के द्वारा पारित लाईफ इंश्‍योरेंस एक्ट के तहत 1 सितंबर 1956 में भारतीय सरकार द्वारा मात्र पांच करोड़ रूपए के साथ शुरू कि थी और आज 2023 तक भारतीय जीवन बीमा निगम एलआईसी कि कुल संपत्ति 38 लाख करोड़ रूपए से अधिक हो चुकी है ।

भारत में नंबर 1 बीमा कंपनी कौन है?

भारत में नंबर 1 बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) है

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