आज आप इस आर्टिकल कि मदद से समझेंगे कि:
- व्यापारिक बैंक क्या है
- बैंक कि परिभाषा क्या है (DEFINITION OF BANK IN HINDI)
- व्यापारिक बैंकों के प्रकार
- व्यापारिक बैंक के कार्य (FUNCTIONS OF COMMERCIAL BANKS IN HINDI)
- बैंकों का महत्व (Important of Bank in Hindi)
- व्यापारिक बैंकों के दोष (DEMERITS OF COMMERCIAL BANKS)
- व्यापारिक बैंकों के दोषों को दूर करने हेतु सुझाव
व्यापारिक बैंक क्या है (What is a Commercial Bank):
व्यापारिक बैंक का आशय, उन बैंकों से होता है जिनकी स्थापना इंडियन कम्पनीज एक्ट के अंतर्गत की गयी है और जो सभी साधारण बैंकिंग कार्य को सम्पन्न करते हैं।
उदाहरणार्थ- इलाहाबाद बैंक, सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा इत्यादि।
भारत में व्यापारिक बैंक का इतिहास अति प्राचीन है। सन् 1800 से 1900 तक को अवधि में बैंक खुल रहे तथा असफल होते रहे हैं। सन् 1806 में बैंक ऑफ बंगाल, 1840 में बैंक बम्बई तथा 1843 में बैंक और मद्रास स्थापित हुए।
इसके बाद 1863 में अपर इण्डिया बैंक, 1865 में इलाहाबाद बैंक, 1874 में एलायन्स बैंक 1894 में पंजाब नेशनल बैंक आदि की स्थापना हुई। प्रथम तथा द्वितीय विश्वयुद्ध में बहुत से बैंक स्थापित हुए तथा असफल भी रहे।
सन् 1935 में रिजर्व बैंक की स्थापना की गई। रिजर्व बैंक की स्थापना के बाद से
व्यापारिक बैंकों को दो भागों में विभाजित किया गया।
- अनुसूचित बैंक
- गैर अनुसूचित बैंक ।
बैंक की परिभाषा (DEFINITION OF BANK IN HINDI):
‘बैंक’ शब्द आधुनिक युग में इतना अधिक लोकप्रिय हो गया है कि आम आदमी भी इसके अर्थ है। भली-भाँति परिचित है। सामान्यतः बैंक से आशय ऐसी संस्था से लिया जाता है, जो धन का लेन-देन करती है। बैंक को कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार है-
(1) फिंडले शिराज के शब्दों में, बँकर वह व्यक्ति, फर्म वा कम्पनी है जिसके पास व्यवसाय के लिए ऐसा स्थान हो, जहाँ मुद्रा अथवा करेंसी की जमा द्वारा साख का कार्य किया जाता है और जिसको जमा का ड्राफ्ट, चेक या आर्डर द्वारा भुगतान किया जाता है अथवा जहाँ स्टॉक, खाण्ड, धातुओं और विपत्रों पर मुद्रा उधार दी जाती है अथवा जहाँ विनिमय बिलों, ऋणपत्रों को बट्टे पर बेचने के लिए स्वीकार किये जाते हैं।
(2) किनले के अनुसार, “बैंक एक ऐसी संस्था है, जो ऋण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऐसे व्यक्तियों को उधार देती है, जिन्हें उनकी आवश्यकता पड़ती है और जिसके पास व्यक्तियों द्वारा अपनी अतिरिक्त राशि जमा की जाती है
भारतीय बैंकिंग प्रमंडल अधिनियम सन् 1949 के अनुसार, “बैंकिंग से तात्पर्य, ऋण देने अथवा विनियोजन के लिए जनता से धन जमा करना है जो माँग करने पर लौटाया जा सकता है तथा चेक ड्राफ्ट अथवा अन्य प्रकार की आज्ञा द्वारा निकाला जा सकता है.
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व्यापारिक बैंकों के प्रकार (TYPES OF COMMERCIAL BANKS):
व्यापारिक बैंकों को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(अ) अनुसूचित बैंक: जिन बैंकों को रिजर्व बैंक ने अपनी दूसरी सारणी में सम्मिलित कर रखा है, वे अनुसूचित बैंक कहलाते हैं। रिजर्व बैंक ने अपनी दूसरी सारणी में उन बैंकों को सम्मिलित कर रखा है, जो
निम्नलिखित शर्तों को पूरा करते हैं-
(i) इन बैंकों की अधिकृत पूँजी एवं रिजर्व कोष मिलाकर कम से कम 5 लाख रुपये के बराबर होनी चाहिए।
(ii) इन बैंकों की अपनी माँग एवं समय देवताओं का 15% भाग रिजर्व बैंक के पास रखना होता है।
(iii) इन बैंकों को प्रति सप्ताह अपना स्थिति विवरण रिजर्व बैंक को भेजना पड़ता है।
(iv) ये बैंक किसी भी ऐसे कार्य में संलग्न नहीं हो सकते जो जमाकर्ताओं के हित में न हों। इन बैंकों को रिजर्व बैंक कुछ विशेष सुविधाएँ भी प्रदान करता है, जैसे-ऋण, बिलों को पुनः भुनाना, सस्ती हस्तांतरण सेवाएँ, समाशोधन गृह की सुविधाएँ इत्यादि ।
(ब) गैर-अनुसूचित बैंक गैर-अनुसूचित बैंक से होते हैं, जो रिजर्व बैंक की दूसरी सारणी में सम्मिलित नहीं किये गये हैं। इन बैंकों को अधिकृत पूँजी एवं रिजर्व कोष मिलाकर 5 लाख रुपये से कम होती है।
इन बैंकों को अपनी जमाओं का एक निश्चित प्रतिशत रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। इन बैंकों पर रिजर्व बैंक का कोई विशेष नियंत्रण नहीं होता है।
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व्यापारिक बैंकों के कार्य (FUNCTIONS OF COMMERCIAL BANKS IN HINDI):
व्यापारिक बैंकों के प्रमुख कार्य निम्नलिखत हैं-
- जमा अथवा निक्षेप प्राप्त करना,
- ऋण अथवा उधार देना,
- अभिकर्ता अथवा प्रतिनिधित्व संबंधी कार्य करना,
- विविध कार्य करना,
- आंतरिक एवं विदेशी व्यापार का अर्थ प्रबंधन,
- साख का निर्माण करना।
जमा अथवा निक्षेप प्राप्त करना (Receiving Deposits):
व्यापारिक बैंकों का एक महत्वपूर्ण कार्य जनता की बचतों को जमा के रूप में प्राप्त करना होता है। जिन व्यक्तियों के पास अतिरिक्त मुद्रा होती है, उनसे बैंक विभिन्न जमा योजनाओं के अन्तर्गत राशि एकत्र करती है। इन जमा राशि पर बैंक द्वारा व्याज भी दिया जाता है
ऋण अथवा उधार देना (Advancing Loans):
व्यापारिक बैंकों का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य ऋण प्रदान करना होता है। विभिन्न जमाओं के रूप में बैंकों द्वारा जो रुपया एकत्र किया जाता है, उसे जरूरतमंद व्यक्तियों, व्यापारिक एवं औद्योगिक संस्थाओं एवं अन्य संस्थाओं को ब्याज पर उधार दिया जाता है।
यह ब्याज दर जमा दरों की तुलना में अधिक होती है, क्योंकि बैंकिंग व्यवसाय का उद्देश्य कम ब्याज पर जमा प्राप्त करना एवं अधिक ब्याज दर पर उधार देकर लाभ कमाना होता है।
अभिकर्ता अथवा प्रतिनिधित्व संबंधी कार्य करना (Agency or Representation Functions):
व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए अनेक प्रकार की सेवाएँ प्रदान करते हैं। इनमें से कुछ सेवाएँ निःशुल्क प्रदान की जाती हैं तथा कुछ सेवाओं के बदले निश्चित शुल्क प्राप्त किया जाता है। ग्राहकों को बैंकों द्वारा प्राय: निम्नांकित सेवाएँ प्रदान की जाती है
बैंकों का महत्व (Important of Bank in Hindi):
- बचतों का उत्पादन कार्यों में प्रयोग
- मुद्रा या पूँजी का हस्तान्तरण,
- मुद्रा प्रणाली में लोच,
- बहुमुल्य वस्तुओं की सुरक्षा,
- बँकिंग आदत को बढ़ावा,
- भुगतान में सुविधा,
- ग्राहकों को विविध सेवाएँ,
- व्यापार और उद्योग को सहायता,
- आर्थिक स्थिरता व संतुलन,
- सरकार को सहायता,
- वित्तीय साधनों का संरक्षण,
- रोजगार में वृद्धि।
व्यापारिक बैंकों के दोष (DEMERITS OF COMMERCIAL BANKS):
व्यापारिक बैंकों के प्रमुख दोष निम्नांकित है-
(1) भारतीय व्यापारिक बैंक जनता की जमाओं को आकर्षित करने में अधिक सफल नहीं रहे हैं।
(2) भारत में बैंकों का विस्तार असंतुलित ढंग से हुआ है।
(3) अन्य देशों की तुलना में भारत में कम बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
(4) अधिकांश व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को कुशल एवं शीघ्र सेवाएँ उपलब्ध करने में असफल रहे हैं।
(5) कुछ बैंक अपर्याप्त मात्रा में जमानत रखकर ऋण प्रदान कर देते हैं, जिसके कारण ऋणों की अदायगी। में कठिनाई उत्पन्न हो जाती है।
(6) अधिकांश भारतीय जनता अशिक्षित होने के कारण बैंकों पर अधिक विश्वास नहीं करती है, जिससे बैंकों का पर्याप्त विकास नहीं हो पाया है।
(7) भारतीय व्यापारिक बैंकों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का उचित निर्देशन या मार्गदर्शन प्राप्त नहीं हो सका है। फलत: इनकी वांछित प्रगति नहीं हो सकी है।
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व्यापारिक बैंकों के दोषों को दूर करने हेतु सुझाव:
(SUGGESTION FOR THE IMPROVEMENT OF COMMERCIAL BANK)
भारतीय व्यापारिक बैंकों के दोषों को दूर करने हेतु निम्नांकित सुझाव दिए जा सकते हैं-
(1) व्यापारिक बैंकों के संतुलित विकास के लिए इनकी नई शाखाएँ पिछड़े एवं ग्रामीण क्षेत्र में खोली जाये।
(2) पूँजी की कमी को दूर करने के लिए बैंकों द्वारा जमा योजना को आकर्षक बनाया जाना चाहिए।
(3) व्यापारिक बैंकों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार द्वारा इन पर लगाये जाने वाले करों में छूट प्रदान की जानी चाहिए।
(4) बैंकों की कार्यकुशलता में वृद्धि हेतु आवश्यक है कि प्रशिक्षित एवं कुशल कर्मचारियों की नियुक्ति की जाये।
(5) देश में बैंकिंग संबंधी शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए।
(6) व्यापारिक बैंकों को प्रतियोगिता के स्थान पर पारस्परिक सहयोग की नीति चाहिए।
(7) रिजर्व बैंक ऐसे नियम व कानून बनाये कि बैंकों में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकी जा सके।

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