भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आश्रित है और कृषि ग्रामीण आजीविका का एकमात्र व्याप आधार है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि भारतीय कृषक गरीब, अशिक्षित तथा ऋण में डूबा हुआ है।
सहकारी बैंक (Cooperative Bank in Hindi):
गरीबी ऋण ग्रस्तता के कारण कृषक न तो खेती के तरीकों में सुधार कर सकता है और न अपनी आर्थिक उन्नति के यो में विचार कर सकता है, क्योंकि गाँवों में साख की कोई सुविधा नहीं है। इसलिए उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बार-बार साहूकारों से ऋण लेना पड़ता है।
इन साहूकारों के ब्याज की दर एवं ऋण देने के शर्तें इतनी कठिन होती है, कि गरीब कृषक की आय का बड़ा भाग व्याज चुकाने में ही चला जद है।
इस कारण कृषक कभी भी ऋण से मुक्त नहीं हो पाता है। भारतीय कृषकों की इन आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने की दृष्टि से सहकारी बैंक को एकमात्र कल्याणकारी संस्था माना जाता है।
सहकारी बैंक का अर्थ (MEANING OF CO-OPERATIVE BANK IN HINDI):
सहकारी बैंक सहकारिता के सिद्धान्त के अनुसार बनाये जाते हैं। सहकारिता का सिद्धान्त परस्पर सहयोग की प्रेरणा देता है। यदि अनेक ऐसे व्यक्ति जिनको ऋण की आवश्यकता है, जो मिलकर एक साख संस्था बना हैं और अपनी बचतों को संस्था के पास जमा कराते हैं तो उस संस्था में कुछ कोष जमा हो जाते हैं।
इनका उपयोग जरूरतमंद सदस्यों को ऋण देने के लिए किया जा सकता है। इस प्रकार परस्पर सहयोग एवं आत्मविश्वास के द्वारा अपनी पहुँच से बाहर भी साख व ऋण प्राप्त किया जा सकता है।
सहकारी बैंकों के कार्य करने की प्रणाली यही है। ग्रामीण कृषक ही सहकारी बैंक के शेयर खरीदते हैं और संस्था की स्थापना करते हैं।
इस बैंक का प्रबंध भी सदस्य हो करते हैं। इस प्रकार आपसी मेल-जोल से एक-दूसरे को लाभ पहुँचाने में सहयोग करते हैं।
सहकारी बैंक वे बैंक हैं जिनकी स्थापना सदस्यों द्वारा अपने पारस्परिक लाभ के लिए की जाती। है और जिन पर सहकारिता अधिनियम लागू होता है।”
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भारत में सहकारी बैंकों का संगठन:
(ORGANISATION OF INDIAN CO-OPERATIVE BANKS)
Bank भारत में सहकारी साख समितियों का संगठन संघीय आधार पर हुआ है। सबसे नीचे प्रारम्भिक अथव प्राथमिक साख समितियाँ हैं।
इन समितियों के ऊपर जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक हैं और उनके ऊपर प्रांतीय सहकारी बैंक या शीर्ष बैंक हैं।
भारत की समस्त सहकारी साख समितियों पर रिजर्व बैंक का नियंत्रण है। देश में सहकारी साख समितियों के संगठन को निम्नलिखित सारणी में दिखाया गया है-
प्राथमिक सहकारी साख समितियाँ:
- सदस्यता,
- पंजीयन,
- कार्यक्षेत्र,
- प्रजातांत्रिक प्रबंधन,
- पूँजी प्राप्ति के साधन,
- दायित्व,
- केवल सदस्यों को ऋण, 8. हिसाब-किताब की जाँच,
- लाभ का वितरण,
- पंचायत,
- रजिस्ट्रार के आदेशों का पालन ।
प्राथमिक सहकारी साख समितियाँ
(PRIMARY CO-OPERATIVE CREDIT SOCIETIES)
‘आशय- प्राथमिक सहकारी साख समिति से आशय उस सहकारी समिति से हैं, जो एक प्राथमिक कृषि साख समिति नहीं होती है तथा जिसका मुख्य उद्देश्य बैंकिंग व्यवसाय करना होता है.
जिसकी प्रदत्त पूँजी तथा संचित कोष एक लाख रुपये से कम नहीं होती तथा जिसको उपविधियों किसी अन्य सहकारी समिति को इसका सदस्य बनने की अनुमति नहीं देती हैं।
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प्राथमिक सहकारी साख समितियाँ दो प्रकार की होती हैं-
(अ) प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियाँ- इन समितियों का निर्माण कृषकों द्वारा किया जाता है तथा ये समितियाँ सदस्य कृषकों को कृषि कार्य हेतु ऋण प्रदान करती हैं। इनका कार्यक्षेत्र गाँव तक ही सीमित होता है। संक्षेप में, इनको कार्यप्रणाली इस प्रकार है-
(1) सदस्यता- कोई भी दस व्यक्ति, जिनकी आयु 18 वर्ष से अधिक हो मिलकर सहकारी साख समितियाँ खोल सकते हैं। सदस्यों की संख्या सौ से अधिक नहीं हो सकी।
(2) पंजीयन – प्रत्येक सहकारी साख समिति का पंजीयन प्रांतीय सहकारिता विधान के अंतर्गत करना अनिवार्य है। पंजीयन निःशुल्क होता है।
(3) कार्यक्षेत्र – प्रायः एक गाँव में एक समिति होती हैं। इससे सदस्यों में आपसी सहयोग एवं सम्पर्क रहता है।
(4) प्रजातांत्रिक – प्रबंधन समिति का प्रबंध प्रजातंत्रीय प्रणाली के आधार पर सदस्यों द्वारा ही होता है, जो अवैतनिक होते हैं। प्रबंधन के लिए दो समितियाँ होती हैं-
(i) साधारण सभा – इसमें समिति के सभी सदस्य होते हैं। इस सभा के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं- प्रबंध समिति को चुनना, सेक्रेटरी को नियुक्ति करना, बजट पास करना, रजिस्ट्रार और आय- व्यय निरीक्षक की रिपोर्ट पर विचार करना, ऋण संबंधी नियम बनाना, समिति के नियमों में आवश्यकतानुसार संशोधन करना आदि।
(ii) प्रबंध सभा- इसमें समिति के सदस्यों द्वारा चुने हुए 5 से लेकर 9 तक सदस्य होते हैं। यह सभा दिन-प्रतिदिन के कार्यों का संचालन करती है।
(5) पूँजी प्राप्ति के साधन सहकारी साख समितियाँ निम्नलिखित दो साधनों से पूँजी एकत्रित करती है
(6) दायित्व – सहकारी के सदस्यों का दायित्व असीमित होता है अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति के लिए उत्तरदायी होता है।
(7) केवल सदस्यों को ऋण सहकारी समितियाँ केवल अपने सदस्यों को हो रूप देती है।
मुख्यत: तीन प्रकार के कार्यों के लिए दी जाती है-
- उत्पादक कार्यों के लिए
- पुराने ऋणों को चुकाने के लिए
- अन्य कार्यों के लिए, जैसे विचा आदि।
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केन्द्रीय सहकारी बैंक:
(CENTRAL CO-OPERATIVE BANK) केन्द्रीय सहकारी बैंक को जिला सहकारी बैंक भी कहा जाता है। इनका कार्यक्षेत्र एक जिला तक ही सीमित रहता है। संक्षेप में, इनकी कार्यप्रणाली इस प्रकार है-
केन्द्रीय सहकारी बैंक की आप कार्य प्रणाली
- संगठन,
- प्रकार,
- प्रबंध,
- पूँजी,
- कार्य,
- लाभ वितरण ।
राज्य सहकारी बैंक अथवा शीर्ष बैंक:
(STATE CO-OPERATIVE BANK OF APEX BANK) राज्य सहकारी बैंक, सहकारी संगठन की, राज्य स्तर पर सर्वोच्च संस्था है। यह प्रत्येक प्रान्त में केवल एक ही हो सकती है। इसलिए इसे ‘सर्वोपरि बैंक या शीर्ष बैंक’ भी कहते हैं।
शीर्ष बैंक भी दो प्रकार के होते हैं-
(i) अमिश्रित शीर्ष बैंक इस प्रकार के बैंकों के सदस्य केवल राज्य के केन्द्रीय सहकारी बैंक ही हो सकते हैं।
(ii) मिश्रित शीर्ष बैंक इस प्रकार के बैंकों के सदस्य सहकारी बैंक, सरकार व निजी व्यक्ति भी हो सकते हैं।
शीर्ष बैंकों के संगठन की प्रमुख बातें निम्नांकित हैं-
(1) प्रबंध इन बैंकों का प्रबंध प्रायः संचालक बोर्ड द्वारा किया जाता है। सहकारी विभाग का रजिस्ट्रार संचालक बोर्ड का पदेन सदस्य होता है अथवा वह कुछ संचालकों को नियुक्त करता है।
(2) पूँजी-इन बैंकों की कार्यशील पूँजी अंश बेचकर, जमा प्राप्त करके, ऋण लेकर व संचित कोष से प्राप्त की जाती है। व्यापारिक बैंकों, स्टेट बैंक और रिजर्व बैंक से भी ये ऋण प्राप्त करते हैं।
(3) कार्य- राज्य सहकारी बैंक निम्नलिखित कार्य करते हैं-
(i) केन्द्रीय सहकारी बैंकों को आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं।
(ii) सभी प्रकार के जमा, सदस्य बैंकों, व्यक्तियों या संस्थाओं से प्राप्त करते हैं
(iii) व्यापारिक बैंकों के अन्य कार्य, जैसे― चेकों द्वारा भुगतान, रुपये की वसूली, धन का स्थानान्तरण आदि कार्य इन बैंकों द्वारा भी किया जाता है।
(iv) जिन राज्यों में केन्द्रीय भूमि विकास बैंक नहीं है, वहां ये भूमि विकास बैंक के ऋणपत्रों को बेचते हैं और उन्हें लम्बे समय के लिए ऋण देते हैं।
सहकारी बैंक का महत्व (Importance of Cooperative Bank):
- प्रजातांत्रिक आधार,
- स्वैच्छिक संघ,
- आत्मनिर्भरता की भावना
- प्रतिस्पर्द्धा की समाप्ति
- नैतिकता का विकास,
- निर्धनता एवं साधनहीनता,
- सार्वभौमिक,
- सरल कार्य पद्धति।

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