वर्तमान समय में विश्व के सभी देशों विशेषकर पूँजीवादी देशों में व्यापार चक्र को क्रियाशीलता के कारण मूल्यों में कभी तेजी और मंदी आती है।
कीमत-स्तर में होने वाले इन परिवर्तनों या मुद्रा के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों के परिणामस्वरूप समस्त अर्थव्यवस्था में अस्थिरता को स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
मुद्रा के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों के प्रमुख दो रूप हैं-
- मुद्रा प्रसार
- मुद्रा संकुचन
मुद्रा के मूल्य में कमी अथवा अर्थव्यवस्था में कीमत-स्तर की वृद्धि मुद्रा प्रसार या मुद्रा स्फीति के रूप में तथा मुद्रा के मूल्य में वृद्धि अथता अर्थव्यवस्था में कीमत-स्तर को कमी मुद्रा संकुचन या मुद्रा अवस्फीति के रूप में जानी जाती है।
आज आप इस आर्टिकल के माध्यम से समझेंगे कि:
- मुद्रास्फीति क्या है
- मुद्रास्फीति कि परिभाषा क्या है
- मुद्रास्फीति के कारण क्या है
- मुद्रास्फीति के प्रकार
- मुद्रा-स्फीति को रोकने के उपाय
मुद्रास्फीति क्या है:
मुद्रा प्रसार या मुद्रा-स्फीति: “मुद्रा प्रसार उस दशा की कहते हैं, जिसमें मुद्रा अथवा सामुद्रा या इन दोनों की मात्रा में खरीदने हेतु उपलब्ध वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा की तुलना में अचानक तीव्र वृद्धि हो जाती है। मुद्रा-स्फोति सदैव मूल्य-स्तर में वृद्धि उत्पन्न करती है”
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मुद्रास्फीति कि परिभाषा क्या है:
मुद्रास्फीति कि कुछ निम्नलिखित परिभाषाएं है:
- प्रो. काउबर के शब्दों में “मुद्रा-स्फीति वह दशा है जिसमें मुद्रा का मूल्य घटता है और वस्तुओं का बढ़ता है
- प्रो. कैमरर के अनुसार: “मुद्रा-स्फीति वह स्थिति है जिसमें मुद्रा की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा में कमी हो जाती है
- प्रो. पीगू के शब्दों में: जब मौद्रिक आय उपार्जन संबंधी क्रियाओं से अधिक अनुपात में बढ़ती है
- मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार: कीमतों में सुस्थिर एवं अविरत होने वाली वृद्धि मुद्रास्फीति है
- वेस्टर शब्दकोष के अनुसार: मुद्रा-स्फीति वह अवस्था है जब वस्तुओं को उपलब्ध मात्रा की तुलना में मुद्रा तथा साख की मात्रा में अधिक वृद्धि होती है और परिणामस्वरूप मूल्य-स्तर में निरंतर तथा महत्त्वपूर्ण वृद्धि होती है
- प्रो. जे. एम. कीन्स के अनुसार: “पूर्ण रोजगार बिन्दु से पूर्व यदि मुद्रा को मात्रा में वृद्धि होती है, तो उसका एक भाग तो उत्पादन द्वारा रोजगार में वृद्धि करेगा तथा दूसरा भाग उत्पादन लागत में वृद्धि करके कीमतों में बुद्धि करेगा पूर्ण रोजगार के बिन्दु से पूर्व की अवस्था को कॉन्स अर्थ-मुद्रा-स्फीति कहते हैं, किन्तु पूर्ण रोजगार के बिन्दु के उपरान्त भी यदि मुद्रा की मात्रा में वृद्धि जारी रहती है, तो उससे मात्र वस्तुओं एवं सेवाओं कीमतों में वृद्धि होती है। ऐसी स्थिति को कीन्स ते पूर्ण मुद्दा-समीति कर रहा है.
मुद्रा स्फीति के प्रकार (Types of Inflation in Hindi):
- चलन स्फीति,
- साख स्फीति,
- माँग प्रोत्साहित स्फीति,
- हीनार्थ प्रोत्साहित स्फीति,
- लागत प्रोत्साहित स्फीति,
- उत्पादन जनित स्फीति,
- पूर्ण स्फीति एवं आंशिक स्फीति
- खुली स्फीति एवं दबी स्फीति,
- अधि-विनियोग स्फीति,
- अवमूल्यन जनित स्फीति
मुद्रा-स्फीति के रूप या प्रकार (TYPE OF INFLATION)
मुद्रास्फीति के प्रमुख रूप या प्रकार निम्नांकित है-
- चलन स्फीति- जब देश में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाने से स्फीति उत्पन्न होती हैं, तो इसे चलन स्फीति कहते हैं। चलन स्फीति प्राय: केन्द्रीय बैंक द्वारा अधिक कागजी मुद्रा चलन में डालने से उत्पन्न होती है।
- साख स्फीति- जब देश के व्यापारिक बैंक तीव्र गति से रकम उधार देने लगते हैं, तो वस्तुओं की माँग में बहुत अधिक वृद्धि होती है। इसके प्रभाव से भी मूल्यों में वृद्धि होने लगती है। तब इसे साख स्फीति कहते है।
- मांग प्रोलराहत स्फीति- जिन देशों में जनसंख्या तीव्र गति में बढ़ती है, वहाँ वस्तुओं तथा सेवाओं की माँग अत्यधिक तीव्रता से बढ़ती है। इससे मूल्यों में वृद्धि होती है। तब इसे माँग प्रोत्साहित स्फीति कहते
- नार्थ प्रोत्साहित स्फीति- प्रजातांत्रिक सरकारें प्रायः आर्थिक विकास के लिए बड़ी-बड़ी रकमें खर्च करती हैं। इतनी बड़ी रकमों को करों द्वारा या कभी-कभी ऋणों द्वारा पूरा करना संभव नहीं होता, अतः घाटे के बजट बनाये जाते हैं, इस घाटे की पूर्ति नए नोट छापकर की जाती है। अतः इसे होनार्थ प्रोत्साहित स्फीति कहा जाता है।
- लागत प्रोत्साहित स्फीति- कभी-कभी वस्तुओं की उत्पादन लागत बढ़ जाती है जिसमे उन वस्तुओं को खरीदने के लिए सरकार को अधिक धन खर्च करना पड़ता है। अनेक बार देखा गया है कि सरकार को बहुत-सी योजनाओं पर पूर्व निर्धारित से अधिक रकम खर्च करनी पड़ती है। जिसका परिणाम लागत प्रोत्साहित स्फीति होता है।
- उत्पादन जनित स्फीति- कभी-कभी मानसून असफल होने, सूखा पड़ने, अन्य किसी कारण से फसल नष्ट होने अथवा हड़ताल आदि के कारण उत्पादन में कमी आ जाती है। इसके प्रभाव से भी मूल्यों में वृद्धि होती है। तब इसे उत्पादन जनित स्फीति कहते हैं।
- पूर्ण स्फीति एवं आंशिक स्फीति- प्रोपोग ने पूर्ण रोजगार की अवस्था के पूर्व यदि अर्थव्यवस्थ में मुद्रा की मात्रा बढ़ाई जाती है, तो इसके कारण कीमत-स्तर में जो वृद्धि होती है उसे आशिक स्फीति कहा है। इसके विपरीत पूर्ण रोजगार के बाद भी यदि मुद्रा की मात्रा बढ़ाई जाती है तो मुद्रा प्रसार बढ़ने लगता है, क्योंकि यह मुद्रा की अतिरिक्त मात्रा कीमतों को बढ़ाने में प्रयुक्त होती है। इसे पूर्ण स्कीति कहते हैं।
- खुली स्फीति एवं दबी स्फीति – यदि समाज की बढ़ती हुई आय के उपभोग पर कोई नियंत्रण नहीं लगाया जाये तो यह खुली मुद्रा स्फीति कहलाती है, किन्तु यदि उपभोग की मात्रा पर नियंत्रण लगा दिया जाये तो यह दबी हुई मुद्रा स्फीति कहलाती हैं।
- अधिविनियोग स्फीति- जब किसी देश में साहसियों द्वारा तीव्र गति से पूंजी विनियोग आरंभ हो जाता है, तो अकस्मात स्फीति की स्थिति पैदा होती है, क्योंकि जब पूँजी के बदले मशीनें, मकान या कच्चा माल । खरीदा जाता है, तो नगद रकम चलन में बढ़ती है। इसे अधि-विनियोग स्फीति कहते है.
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मुद्रा-स्फीति के कारण:
मुद्रा-स्फीति के कारण (CAUSES OF INFLATION)
मुद्रास्फीति के कारणों को निम्न दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(अ) मौद्रिक आय में वृद्धि करने वाले कारण मौद्रिक आय में वृद्धि निम्न कारण होते हैं-
1. घाटे की वित्त व्यवस्था- जब सरकार के व्यय कर, ऋण तथा विदेशी सहायता लेकर भी पूरे नहीं होते हैं, तब बजट के घाटे को पूरा करने के लिए अतिरिक्त मुद्रा निर्गमित की जाती है।
इससे मुद्रा की मात्रा में बुद्धि हो जाती है और वस्तुओं तथा सेवाओं की मात्रा यथास्थिर रहने पर जनता को मौद्रिक आय बढ़ जाती है और मुद्रा-स्फीति की स्थिति निर्मित हो जाती है।
2. मुद्रा एवं साख नीति: देश में आर्थिक विकास की गति तीव्र करने तथा युद्धजनित व्ययों को पूरा करने के लिए केन्द्रीय बैंक अत्यधिक मात्रा में पत्र- मुद्रा का निर्गमन करता है। प्रारंभ में मुद्रा कीइस वृद्धि से सामान्य स्फीति ही उत्पन्न होती है. किन्तु यदि पत्र- मुद्रा के निर्गमन पर नियंत्रण नहीं रखा जाता है तो इसका रूप भयंकर हो जाता है।
3. मुद्रा का चलन वेग: समाज में तरलता पसंदगी कम होने तथा उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि होने के कारण मुद्रा का चलन वेग बढ़ जाता है। इससे लोगों की मौद्रिक आय भी बढ़ जाती है, फलतः मुद्रा-स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
अनुत्पादक व्यय में वृद्धि जब सरकार द्वारा अनुत्पादक कार्यों पर भारी व्यय किया जाता है तो इससे वस्तुओं तथा सेवाओं को वृद्धि तो नहीं होती, परन्तु चलन में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाती है। फलस्वरूप मुद्रा स्फीति की स्थिति निर्मित हो जाती है।
राजकोषीय नीति- जब राजकोषीय नीति द्वारा करों को सख्ती से वसूल करने की व्यवस्था नहीं की यतो है जो इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाती है जो वस्तुओं एवं सेवाओं पर दबाव डालती है। फलमूल्य बढ़ने लगते हैं और मुद्रा-स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
मुद्रा-स्फीति को रोकने के उपाय:
(अ) मौद्रिक उपाय-
- मुद्रा निकालने संबंधी नियमों को कठोर बनाना,
- साख स्फीति को कम करना,
- पुरानी मुद्रा वापस लेकर नई मुद्रा देना
- बजट में संतुलन,
- सार्वजनिक ऋण में वृद्धि,
- करों में वृद्धि,
- सार्वजनिक व्ययों में वृद्धि,
- मजदूरी बंधन,
- उत्पादन वृद्धि,
- मूल्य नियंत्रण।
अन्य उपाय-
- मूल्य नियंत्रण एवं राशनिंग,
- निश्चित आय वाले वर्ग को महँगाई भत्ता देना,
- मूल्यों में सहायता,
- विनियोग में नियंत्रणों,
- आय नियंत्रण।

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