इस आर्टिकल कि मदद से समझेंगे कि ब्याज दर क्या है (Interest Rate in Hindi) और इससे जुडी सभी जानकारी आपको प्रदान करेंगे जैसे कि:
- ब्याज दर (Interest Rate) क्या है
- ब्याज दर का अर्थ और परिभाषा
- ब्याज के प्रकार (TYPES OF INTEREST IN HINDI)
- ब्याज की दर को प्रभावित करने वाले तत्व
- ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त, (MODERN THEORY OF INTEREST)
ब्याज दर (Interest Rate in Hindi) क्या है:
ब्याज दर एक प्रतिशत है जो ऋणदाता उनसे उधार ली गई राशि पर शुल्क लेता है। मूल रूप से ब्याज दर पैसे उधार लेने की लागत है। जब कोई व्यक्ति, बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान जैसे कि क्रेडिट यूनियन पैसे उधार देता है, तो वे आम तौर पर ऋण की अवधि के दौरान पैसे के नुकसान की भरपाई की उम्मीद करते हैं।
ऐसा इसलिए है क्योंकि वे पैसे का उपयोग अन्य चीजों के लिए कर सकते हैं, जैसे कि स्वयं की खरीदारी करना या अधिक पैसा कमाने के लिए इसे निवेश करना। उस मुआवजे को ब्याज कहा जाता है और ब्याज दर ऋण की प्रति अवधि कितनी देय है।
सामान्य बोलचाल की भाषा में ब्याज का अर्थ, उस भुगतान से लगाया जाता है जो एक ऋणदाता को उधार ली गई राशि के प्रयोग के बदले में दिया जाता है,
लेकिन अर्थशास्त्र में ब्याज का अर्थ भिन होता है राष्ट्रीय आय का वह भाग जो पूँजीपति को उसकी पूँजी की सेवाओं के लिए दिया जाता है। अर्थशास्त्र में ब्याज कहलाता है।
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ब्याज दर का अर्थ और परिभाषा (Byaj Dar Ki Paribhasha):
ब्याज को निम्न प्रकार से परिभाषित (MEANING AND DEFINITION OF INTEREST IN HINDI) किया गया है-
प्रो. मार्शल के अनुसार, “ब्याज किसी बाजार में पूँजी के प्रयोग की कीमत है।
प्रो. कार्बर के शब्दों में, “ब्याज वह आय है, जो पूँजी के स्वामी को प्राप्त होती है।
प्रो. मेयर्स के अनुसार, “ब्याज उस कीमत को कहते हैं, जो उधार देने योग्य कोषों के प्रयोग के बटने में दी जाती है
प्रो. जे. एम. कीन्स के शब्दों में, “ब्याज एक निश्चित अवधि के लिए तरलता पसंदगी के परित्याग का पुरस्कार है।
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि ब्याज में निम्नलिखित बातें शामिल होती हैं-
(1) पूँजी के व्यवहार के एवज में ब्याज दिया जाता है।
(2) पूँजी उत्पादक होती है, इसलिए पूंजी का व्यवहारकर्ता पूँजी के स्वामी को व्याज देता है
(3) पूँजी के व्यवहार से उत्पादन बढ़ता है, अतः पूँजीको प्राप्त है।
(4) ब्याज प्रतीक्षा का फल है।
(5) ब्याज सामान्यतः मुद्रा के रूप में होता है।
(6) ब्याज मुद्रा के उपयोग के बदले में दो गयी कीमत है
(7) ब्याज एक निश्चित समयावधि के लिए तरलता पसंदगी के का पुरस्कार है
ब्याज के प्रकार (TYPES OF INTEREST IN HINDI):
- कुल ब्याज
- शुद्ध ब्याज
कुल ब्याज:
सामान्य अर्थ में, जिसे हम ब्याज कहते हैं, कुल ब्याज ही होता है। एक ऋणदाता, ऋणी से उधार दी गयी।
राशि के लिए जो कुल आय प्राप्त करता है, वह कुल व्याज या सकल व्याज कहलाता है ।
प्रो. चैपमैन के अनुसार, “कुल ब्याज में पूँजी को उधार देने के लिए किया गया भुगतान, जोखिम, जो प्रकार के हो सकते हैं—
(i) व्यक्तिगत जोखिम तथा
(ii) व्यावसायिक जोखिम को उठाने के लिए किया पर भुगतान पूँजी को विनियोजन में लगाने से होने वाली असुविधा के लिए भुगतान तथा विनियोजन की देख-रेख करने एवं उसके विषय में चिन्ता करने के लिए दिया गया भुगतान सभी सम्मिलित रहते हैं।
ब्रिग्स तथा जार्डन के शब्दों में, “कुल व्याज एक मिश्रित भुगतान है, जो ऋणी द्वारा ऋणदाता को किया जाता है।”
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कुल ब्याज के अंग—कुल ब्याज में निम्नांकित पुरस्कार सम्मिलित रहते हैं-
कुल ब्याज के अंग:
- शुद्ध ब्याज,
- जोखिम का पुरस्कार: व्यक्तिगत जोखिम, व्यावसायिक जोखिम,
- व्यवस्था का प्रतिफल,
- असुविधाओं का प्रतिफल ।
(1) शुद्ध ब्याज ऋणी द्वारा केवल पूँजी के उपयोग के लिए जो राशि ऋणदाता को दी जाती है, उसे कहा जाता है और यह कुल ब्याज का एक महत्वपूर्ण अंग होता है।
(2) जोखिम का पुरस्कार—जब एक ऋणदाता अपनी पूँजी किसी ऋणों को उधार देता है तो रुपये के का वह जोखिम उठाता है। यह संभव है कि ऋणी उधार की राशि को न लौटाये। वह अपने आपको अपने व्यवसाय को दिवालिया घोषित कर दें।
(3) व्यवस्था का प्रतिफल ऋणदाता को ऋण देने तथा उसे वसूल करने के लिए हिसाब-किताब ना पड़ता है। इसके लिए वह मुनीम या लेखापाल को नियुक्ति करता है।
ऋण की वसूली के लिए तकादेदार है। कभी-कभी तो गुण की वसूली के लिए कानूनी सलाह लेनी पड़ती है और अदालती कार्यवाही भी को पड़ती है।
इन सब कार्यों के लिए पूँजीपति को खर्च करना पड़ता है, अतः वह बणी से इस व्यवस्था के पुरस्कार अवश्य ही लेता है। व्यवस्था का यह पुरस्कार भी कुल ब्याज में सम्मिलित रहता है।
ब्याज की दरों में भिन्नता के कारण:
- जोखिम में अन्तर,
- ऋण का उद्देश्य,
- ऋण की अवधि,
- प्रतिभूति की मात्रा,
- ऋण की मात्रा,
- विनियोग का प्रतिफल,
- बचत में अन्तर,
- प्रतियोगिता,
- बैंकिंग सुविधाओं में अन्तर,
- पूँजी की गतिशीलता,
- आर्थिक विकास का स्तर
ब्याज की दर को प्रभावित करने वाले तत्व (FACTORS AFFECTING RATE OF INTEREST):
1 ब्याज की दरों में भिन्नता के कारण
(CAUSES OF DIFFERENCE IN THE RATE OF INTEREST)
एक ही समय में ब्याज की दरें भिन्न-भिन्न पायी जाती हैं। ब्याज की दरों में भिन्नता के प्रमुख निम्नलिखित है-
(1) जोखिम में अन्तर ऋणदाताओं को ऋण देने में जोखिम उठाना पड़ता है। ये जोखिम व्यक्ति एवं व्यावसायिक दोनों प्रकार के हो सकते हैं। जोखिम अधिक होने पर ब्याज की दर ऊँची तथा जोखिम कम होने पर ब्याज की दर कम निश्चित की जाती है।
(2) ऋण का उद्देश्य उत्पादक कार्यों के लिए ब्याज की दर कम ली जाती है, क्योंकि इसमें रुपये के डूब जाने का जोखिम कम होता है, लेकिन अनुत्पादक कार्यों के लिए ऊँची ब्याज की दर ली जाती है। इसका कारण यह है कि ऋण की वसूली में अधिक जोखिम रहता है।
(3) ऋण की अवधि सामान्यतया ऋण की अवधि जितनी अधिक होती है, ब्याज की दर उतनी ही अधिक होती है। जबकि कम समय के लिए ब्याज की दर कम होती है।
(4) प्रतिभूति की मात्रा पर्याप्त मात्रा में प्रतिभूति होने पर ऋण कम ब्याज की दरों पर मिल जोता है, लेकिन प्रतिभूति की मात्रा कम होने पर ऋण अधिक व्याज की दर पर प्राप्त होता है।
(5) ऋण की मात्रा सामान्यतया, ऋण की राशि कम होने पर ब्याज की दर अधिक तथा ऋण अधिक होने पर ब्याज की दर कम होती है। इसका कारण यह है कि ऋण की राशि कम हो या अधिक को ऋण के प्रबन्ध पर समान व्यय करना पड़ता है।
(6) विनियोग का प्रतिफल विनियोग का प्रत्याशित प्रतिफल ऊँचा होने पर ब्याज की दर अधिक प्रतिफल नीचा होने पर ब्याज की दर कम होती है ।
(7) बचत में अन्तर — जिन क्षेत्रों में पर्याप्त बचत होती है, वहाँ ब्याज की दर कम होती है तथा जिन क्षेत्रों कम होती है, वहाँ ब्याज की दर अधिक होती है ।
(8) प्रतियोगिता — यदि ऋण देने वालों में परस्पर कठोर प्रतियोगिता पायी जाती है, तो ब्याज की दर कम इसके विपरीत यदि ऋणदाता को एकाधिकारी स्थिति प्राप्त है, तो ब्याज की दर ऊँची होगी।
(9) बैंकिंग सुविधाओं में अन्तर जिन स्थानों में बैंकिंग सुविधाओं का अभाव है, ऐसे स्थानों में व्याज दर ऊँची होगी। इसके विपरीत, जहाँ बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार है वहाँ व्याज की दर कम होगी।
(10) पूंजी की गतिशीलता यदि पूँजी पूर्णरूप से गतिशील है, तो ब्याज की दर एक समान होगी । सके विपरीत, गतिशीलता के अभाव में ब्याज की दर में अन्तर होगा ।
(11) आर्थिक विकास का स्तर—जो देश विकसित अवस्था में है वहाँ ब्याज की दर कम और अविकसित देशों में ब्याज की दर अधिक होती है।
ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त, (MODERN THEORY OF INTEREST):
ब्याज के आधुनिक सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो. हिक्स और प्रो. हैन्सन के द्वारा किया गया है । यही कारण के इस सिद्धान्त को “हैन्सन-हिक्स” सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है) चूँकि आधुनिक ब्याज के जान्त का निर्माण व्याज के प्रतिष्ठित सिद्धान्त तथा कोन्स के तरलता पसंदगी सिद्धान्त के आधार पर किया है.
इसलिए इसे ‘ब्याज का नव-केन्सियन सिद्धान्त’ भी कहते हैं। ब्याज के आधुनिक सिद्धान्त में प्रतिष्ठित सिद्धान्त के दो तत्वों बचत एवं विनियोग तथा कीन्स के सद्वान्त के दो तत्वों—नकद मुद्रा की माँग एवं नकद मुद्रा को पूर्ति का समावेश किया गया है ।
इस प्रकार के तत्वों के अतिरिक्त एक अन्य तत्व ‘आय’ को लेकर ब्याज के आधुनिक सिद्धान्त की व्याख्या की गयी है।
ब्याज के आधुनिक सिद्धान्त में ब्याज निर्धारण हेतु ‘मौद्रिक संतुलन’ और ‘आय संतुलन’ दोनों शर्तें एक साथ पूरी जाती हैं। कीन्स, के अनुसार, ब्याज का निर्धारण तरलता पसंदगी (L) तथा मुद्रा की मात्रा (M) के संतुलन द्वारा होता है।
इससे हमें LM वक्र प्राप्त हो जाता है, जो मौद्रिक संतुलन का संकेतक है। इसके विपरीत, ब्याज के प्रतिष्ठित सिद्धान्त के अनुसार ब्याज का निर्धारण विनियोग (I) और बचत (S) के संतुलन द्वारा होता है तथा हमें IS वक्र प्राप्त हो जाता है जो ‘आय संतुलन’ न का संकेतक है ।

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