लोहा एवं इस्पात उद्योग का महत्व (Iron and Steel Industry in Hindi)

इस आर्टिकल कि मदद से आप लोहा और इस्पात उद्योग (Iron and Steel Industry in Hindi) के बारे में समझेंगे:

Highlights:

  1. लोहा एवं इस्पात उद्योग का महत्व (IRON AND STEEL INDUSTRY)
  2. How Many Iron And Steel Industries are There in India in Hindi
  3. Problems of the Iron and Steel Industry in Hindi
  4. Suggestions for the Improvement of the Iron and Steel Industry

लोहा एवं इस्पात उद्योग का महत्व (Important of Iron and Steel Industries in Hindi):

लोहा व इस्पात उद्योग आधारभूत उद्योगों में से एक महत्त्वपूर्ण उद्योग है, अतः इसको आर्थिक संरचना की रीढ़ मानते हैं। किसी भी देश के विकास के लिए लोहा व इस्पात उद्योग का तेजी से विकास करना अत्यन्त आवश्यक होता है।

इस उद्योग पर कृषि, उद्योग, परिवहन, रक्षा व दैनिक उपभोग की सैकड़ों वस्तुओं का निर्माण निर्भर करता है। लोहा व इस्पात उद्योग के बारे में स्वर्गीय पं. जवाहरलाल नेहरू से कहा था कि “लोहा एवं इस्पात उद्योग आधुनिक सभ्यता का आधार है।

इसी प्रकार कार्लाइल के अनुसार, ” वे देश जो लोहे पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं, शीघ्र ही सोने पर नियंत्रण प्राप्त करते हैं।” इस युग में लोहे का महत्व सोने से बढ़कर ही है।

भारत में लोहा एवं इस्पात उद्योग प्राचीन है। दिल्ली में कुतुबमीनार के पास स्थापित ‘अशोक लाटा इस बात का जीता जागता प्रमाण है जिसकी स्थापना ईसा से पूर्व प्रथम शताब्दी में की गयी थी।

विश्व के विशेषज्ञ इस बात पर आश्चर्य करते हैं कि इतने समय पूर्व इतनी उच्चकोटि का इस्मात किस प्रकार भारतवासियों द्वारा तैयार किया गया होगा।

कोणार्क के सूर्य मंदिर तथा पुरी के ज्ञान मंदिर में जो लोहे की छड़ें आज से 800 वर्ष पूर्व लगायी गयी थीं, वे सभी भारतीय इस्पात उद्योग के प्राचीन गौरव को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करती हैं।

लोहा-इस्पात उद्योग का विकास एवं वर्तमान स्थिति भारत में आधुनिक तरीकों से लोहा व इस्पात के निर्माण का सफल प्रयास सन् 1870 में किया गया, जबकि बंगाल आयरन वर्क्स कम्पनी की स्थापना की गयी।

लेकिन इस उद्योग का वास्तविक रूप में शुभारम सन् 1907 में हुआ था, जबकि बिहार (झारखण्ड) में जमशेदपुर नामक स्थान पर टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (टिस्को) की स्थापना की गयी।

इस उद्योग की प्रगति में यह एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसके पश्चात् सन् 1919 में बर्नपुर में इंडियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (इस्को) की स्थापना की गयी।

इस उद्योग की सार्वजनिक क्षेत्र में पहली इकाई सन् 1923 में भद्रावती नामक स्थान पर विश्वेश्वरैग्या आयरन एण्ड स्टील लिमिटेड स्थापित की गयी।

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स्वतंत्रता के पश्चात् प्रथम पंचवर्षीय योजना में लोहा एवं इस्पात उद्योग की प्रगति के बारे में विशेष ध्यान दिया गया। किन्तु द्वितीय पंचवर्षीय योजना में जबकि देश के औद्योगिक विकास के आधार को मजबूत करने की बात सोची गयी तब इस उद्योग को सर्वाधिक प्रधानता दी गयी।

यह इस बात से स्पष्ट है कि इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत 10 लाख टन इस्पात पिण्ड क्षमता के तीन एकीकृत इस्पात कारखाने लगाने का कार्य आरंभ हुआ। इनमें पश्चिमी जर्मनी की सहायता से राऊरकेला, सोवियत रूस की मदद से मिलाई व ब्रिटेन की मदद से दुर्गापुर कारखाने की स्थापना की गयी।

विभिन्न चरणों में ये तीनों कारखाने सन् 1956 और सन् 1962) के बीच उत्पादन कार्य करने लगे। तीसरी पंचवर्षीय योजना में इन तीनों कारखानों को क्षमता में विस्तार तथा बोकारों में एक नये कारखाने की स्थापना की व्यवस्था की गयी।

चौथी पंचवर्षीय योजना में वर्तमान इस्पात क्षमता के अधिकतम उपयोग के कार्यक्रम बनाये गये तथा अतिरिक्त इस्पात क्षमता के सृजन के उद्देश्य से सलेम (तमिलनाडु), विशाखापट्टनम (आन्ध्रप्रदेश) तथा विजयनगर (कर्नाटक) में तीन नये कारखाने स्थापित करने की योजना बनायी गयी

जिससे कि पाँचवी योजना की इस्पात की जरूरतें पूरी हो सके। बोकारो स्टील कारखाने में पाँचवी योजना के अन्त में सन् 1978 में काम करना प्रारंभ कर दिया। इस कारखान में उत्पादन आरंभ होने पर इस्पात पिण्डों की कुल प्रस्तावित क्षमता जो मार्च, 1974 में 89 लाख टन थी

वह बढ़कर मार्च, 1980 में 116 लाख टन हो गयी। इंडियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी का प्रबंध सन् 1972 में तथा स्वामित्व सन् 1976 में सरकार ने अपने हाथ में ले लिया जिससे कि इसका सही प्रकार से विकास किया जा सकें।

How Many Iron And Steel Industries are There in India in Hindi:

भारत में कितने लोहा और इस्पात उद्योग हैं:

भारत में वर्तमान में एकीकृत 14 इस्पात कारखाने हैं, जिनमें से 5 (भिलाई, राऊरकेला, दुर्गापुर, बोकारो इंडियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी तथा विशाखापट्टनम ) सार्वजनिक क्षेत्र में तथा एक (टाटा एण्ड स्टील कम्पनी) निजी क्षेत्र में है।

प्रारंभ में प्रबंध के लिए भिलाई, दुर्गापुर, राऊरकेला कारखानों के लिए एक कम्पनी हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड (HSL) तथा बोकारो कारखाने के लिए बोकारो स्टील लिमिटेड (BSL) थी,

किन्तु सन् 1973 में सरकार ने स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) की स्थापना की तथा सार्वजनिक क्षेत्र के प्रथम पाँच एकीकृत इस्पात कारखानों का प्रबंध इसे सौंप दिया।

इस पुनर्गठन के परिणामस्वरूप HSL तथा BSL का अस्तित्व समाप्त हो गया। सन् 1982 में राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड की स्थापना की गयी,

जिसे विशाखापट्टनम में एकीकृत इस्पात कारखाने का निर्माण कार्य सौंपा गया। अनेक कारखानों की स्थापना तथा उत्पादन क्षमता में वृद्धि के फलस्वरूप इस उद्योग का उत्पादन बहुत बढ़ गया।

लोहा व इस्पात उद्योग की समस्याएं (Problems of Iron and Steel Industry in Hindi):

लोहा व इस्पात उद्योग की समस्याओं को निम्न बिन्दुओं के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) उत्तम कोयले की समस्या:

इस उद्योग की सबसे महत्वपूर्ण समस्या उत्तम कोयले का अभाव है। इसके अभाव में लोहे व इस्पात बनाने की लागत में वृद्धि हो जाती है। इसके साथ-साथ एक समस्या यह भी है कि कोयले की पूर्ति नियमित नहीं है। वर्ष में कई बार इन कारखानों में कोयले का अकाल-सा पड़ जाता है।

(2) परिवहन की समस्या:

इस उद्योग की दूसरी समस्या परिवहन के साधनों की है। इस उद्योग के कच्चेमाल व तैयार माल सभी भारी माल की श्रेणी में आते हैं, जिन पर ढुलाई में भारी व्यय किया जाता है। यह व्यय काफी ऊंचा है यद्यपि रेलवे द्वारा इन पर भाड़ा कुछ कम लिया जाता है, अतः इन व्ययों में कमी करने की आवश्यकता है।

(3) प्रशिक्षित कर्मचारियों की समस्या:

इस उद्योग की तृतीय समस्या प्रशिक्षित कर्मचारियों की है। आज भी प्रशिक्षित इंजीनियर, टेक्नीशियन व अन्य यांत्रिक योग्यता वाले व्यक्तियों का अभाव- सा है, यद्यपि यहाँ पर इस संबंध में काफी प्रगति हुई है।

(4) उत्पादन क्षमता का कम उपयोग:

लोहा व इस्पात उद्योग में उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं हो पा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन लागत अधिक आ रही है ।

(5) श्रम समस्या:

लोहा व इस्पात उद्योग में श्रमिक समस्या भी है। वे समय-समय पर वेतन वृद्धि को माँग कर उद्योग के उत्पादन को हड़ताल आदि से प्रभावित कर देते हैं।

(6) पूँजी लागतों में वृद्धि:

लोहा व इस्पात कारखाना स्थापित करने एवं उनका विकास करने में भी लागतों में बराबर वृद्धि हो रही है। अब 50 लाख टन से छोटे आकार के कारखाने आर्थिक दृष्टिसिद्ध नहीं हो रहे हैं। अतः पूँजी लागत वृद्धि भी इस उद्योग की एक समस्या है।

(7) मूल्य की समस्या:

देश में लोहे व इस्पात के मूल्य उसकी लागत की तुलना में लाभकारी है। इसमें पूँजी निर्माण उचित दर से नहीं होता है। श्री जे. आर. डी. टाटा के अनुसार, भारत में लोहे पर्व की संरचनात्मक वस्तुओं के मूल्य ब्रिटेन व अमेरिका की तुलना में क्रमश: 63.64 प्रतिशत कम है।

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Suggestions for the Improvement of the Iron and Steel Industry:

लोहा व इस्पात उद्योग की दशा सुधारने के लिए सुझाव लोहा व इस्पात उद्योग की दशा सुधारने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-

(1) उत्तम कोयले का प्रबंध:

उत्तम कोयता उपलब्ध कराया जाये जिसमें गर्मी अधिक हो मात्रा कम हो। अभी हाल ही में सरकार ने निर्णय लिया है कि अच्छे किस्म का कोयला आयात किया जाये।

(2) रेल द्वारा भाड़े में कम:

परिवहन समस्या को हल करने के लिए सुझाव दिया जाता है कि रेलों की इस उद्योग में काम आने वाले कच्चेमाल व उद्योग द्वारा निर्मित माल के भाड़े में कमी कर उद्योग को राहत देनी चाहिए।

(3) प्रशिक्षण केन्द्रों का विकास:

प्रशिक्षित कर्मचारियों के लिए पुराने प्रशिक्षण केन्द्रों का विकास एवं नये केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिए।

(4) पूर्ण क्षमता का उपयोग:

उद्योग की उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं हो पा रहा है अतः उसका पूर्ण उपयोग करने के लिए आवश्यक कदम उठाये जाने चाहिए।

(5) श्रम समस्याओं का समाधान:

श्रम समस्याएँ एवं बढ़ती हुई पूँजी लागत तो नियोजन काल की देन है। इसको पूर्णरूप से समाप्त नहीं किया जा सकता है, अतः इस पर नियंत्रण करने की आवश्यकता है।

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