आज के इस आर्टिकल में आप लगान (Lagan) के बारे में संछिप्त विवरण से समझेंगे:
Highlights:
- लगान से तात्पर्य क्या है (Lagan kya hota hai)
- लगान का अर्थ और परिभाषा (Lagan ka Arth)
- लगान के विभिन्न रूप क्या है
- लगान के सिद्धांत
- लगान सिद्धान्त की आलोचनाएँ
लगान से तात्पर्य क्या है (Lagan kya hota hai):
सामान्य बोलचाल की भाषा में, लगान का तात्पर्य उस भुगतान से लगाया जाता है जो भूमि, दुका मकान, खान इत्यादि के उपयोग के लिए उसके स्वामी को दिया जाता है, किन्तु अर्थशास्त्र में लगान शब्द का प्रयोग एक विशेष अर्थ में किया जाता है।
अर्थशास्त्र में, राष्ट्रीय आय का जो भाग भू-स्वामियों को उनकी भूमि के प्रयोग के बदले में दिया जाता है, लगान कहलाता है । अर्थशास्त्र में ‘भूमि’ शब्द का प्रयोग “प्रकृति के निःशुल्क उपहारों के लिए किया जाता है ।
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लगान का अर्थ और परिभाषा (Lagan ka Arth):
लगान की परिभाषा (Lagan ki Paribhasha):
अर्थशास्त्रियों द्वारा लगान की दी गई परिभाषाओं को निम्न रूप में बाँट सकते हैं—
- प्रतिष्ठित परिभाषाएँ
- आधुनिक परिभाषाएँ
(अ) प्रतिष्ठित परिभाषाएँ: प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार, लगान एक ऐसा भुगतान है जो भूमि के प्रयोग के बदले दिया जाता है । इन अर्थशास्त्रियों ने लगान का सम्बन्ध केवल भूमि तथा अन्य प्रकृति प्रदत उपहारों के साथ जोड़ा है।
इन अर्थशास्त्रियों में रिकार्डो, सीनियर, माल्यस व मार्शल आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । इन अर्थशास्त्रियों ने लगान को निम्न प्रकार परिभाषित किया है—
डेविड रिकार्डों के अनुसार, “लगान भूमि की उपज का वह भाग है, जो भूमिपति को भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के बदले में दिया जाता है। प्रो. मार्शल के शब्दों में, “समस्त समाज की दृष्टि से प्रकृति के निःशुल्क उपहारों से प्राप्त आय को लगान कहते हैं
( ब ) आधुनिक परिभाषाएँ— आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, लगान उत्पत्ति के सभी साधनों को दिया जाता है। उनके मतानुसार जिस प्रकार भूमि में सीमितता का गुण पाया जाता है, उसी प्रकार उत्पत्ति के अन्य साधनों में भी यह गुण पाया जाता है और इसी कारण लगान केवल भूमि को ही नहीं बल्कि उत्पत्ति के सभी साधनों को समान रूप से प्राप्त होता है।
श्रीमती जॉन राबिन्सन के अनुसार, “लगान के विचार का सार, वह अतिरेक है जो कि उत्पादन के एक साधन की इकाई को इस न्यूनतम आय के ऊपर प्राप्त होती है जिसके कारण साधन की वह इकाई अपने उसी व्यवसाय में कार्य करने के लिए प्रेरित होती है.
लगान के विभिन्न रूप क्या है:
- कुल लगान या सकल लगान,
- आर्थिक लगान
- ठेका या प्रसंविदा लगान,
- भेदात्मक लगान,
- सीमितता लगान,
- स्थिति लगान ।
लगान के विभिन्न रूप (VARIOUS FORMS OF RENT)
अर्थशास्त्र में लगान शब्द का प्रयोग निम्न तीन रूपों में किया गया है—
(1) कुल लगान अथवा सकल लगान— सामान्य बोलचाल की भाषा में जिसे हम लगान कहते हैं, वह कुल लगान ही होता है। कुल लगान में आर्थिक लगान के अलावा कुछ अन्य भुगतान भी शामिल होते हैं। कुल
लगान में निम्न तत्व सम्मिलित होते हैं-
(1) केवल भूमि के प्रयोग के लिए किया गया भुगतान
(2) भूमि सुधार में लगायी गयी पूँजी का ब्याज,
(3) भूमि के प्रबंध का व्यय,
(4) भूमि स्वामी के जोखिम का पुरस्कार |
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(2) आर्थिक लगान—आर्थिक लगान, कुल लगान का
एक भाग है कुल लगान का वह भाग जो भूमिपति को केवल भूमि के प्रयोग के बदले में दिया जाता है, आर्थिक लगान कहलाता है। इसमें अन्य किसी सेवा का भुगतान नहीं किया जाता है। इन्हें वास्तविक लागत अथवा सीमांत लागत भी कहते हैं।
डेविड रिकार्डों के अनुसार, “श्रेष्ठ भूमि की उपज तथा सीमांत भूमि की उपज में जो अन्तर होता है, उसे आर्थिक लगान कहते हैं।” आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, “आर्थिक लगान वह अतिरेक है जो उत्पत्ति के किसी भी साधन को उसकी अवसर लागत के ऊपर प्राप्त होता है ।”
(3) ठेका या प्रसंविदा लगान—
ठेका लगान से तात्पर्य ऐसे लगान से है जो भूमिपति व काश्तकार के बीच समझौते द्वारा निर्धारित किया जाता है। यह समझौता लिखित भी हो सकता है, और मौखिक भी।
ठेका लगान एक निश्चित समय से सम्बन्धित होता है और यह आर्थिक लगान के बराबर भी हो सकता है, उससे कम भी हो सकता है और उससे अधिक भी हो सकता है।
लेकिन यह दोनों पक्ष के सौदा करने की शक्ति पर निर्भर करता है इस लगान का निर्धारण माँग और पूर्ति को सापेक्षिक शक्तियों द्वारा किया जाता है।
(4) भेदात्मक लगान—
भेदात्मक लगान, उस लगान को कहते हैं, जो विभिन्न भूमि की उपजाऊ शक्तियों के अन्तर के कारण उत्पन्न होता है। यह निर्विवाद सत्य है कि सभी भूमि की उपजाऊ शक्ति अलग- अलग होती है कुछ भूमि अधिक उपजाऊ होती हैं
तो कुछ कम अधिक उपजाऊ भूमि पर अधिक उपज प्राप्त होती है और कम उपजाऊ भूमि पर कम उपज प्राप्त होती है। अधिक उपजाऊ भूमि पर कम उपजाऊ भूमि की तुलना में जो अधिक उपज प्राप्त होती है, यही उस भूमि का लगान कहलाती है ।
(5) सीमितता लगान—
सीमितता लगान ऐसे लगान को कहते हैं, जो किसी साधन की पूर्ति, उसकी भाँग की तुलना में कम होने के कारण उत्पन्न होता है । चूँकि भूमि की पूर्ति सीमित होती है और इसे माँग में वृद्धि होने पर नहीं बढ़ाया जा सकता है ।
अतः जैसे-जैसे भूमि की माँग में वृद्धि होती जायेगी, वैसे-वैसे भूमि के लगान में वृद्धि होती जायेगी । इसे ही सीमितता लगान कहते हैं ।
लगान के निर्धारण के सिद्धान:
(THEORIES OF DETERMINATION OF RENT) लगान के निर्धारण के संबंध में मुख्यतया तीन सिद्धान्त है-
- रिकार्डों का लगान सिद्धान्त
- लगान का आधुनिक सिद्धान्त,
- आभास लगान।

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