नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अर्थशास्त्र के महत्वपूर्ण टॉपिक मांग क्या है (Mang Kya Hai), Mang Ke Prakar Kya Hai, Mang ki Paribhasha इत्यादि तथ्यों के बारे में आपको विस्तृत रूप से जानकारी देंगे।
तो चलिए बिना देरी किए आज का यह आर्टिकल शुरू करते हैं।
आर्टिकल शुरू करने से पहले मांग के बारे में अच्छे से समझाने के लिए आपको एक कहानी बताते है:
एक बार की बात है एक छोटा सा शहर था जहां एक फूल वाला रहता था और उसका नाम मोहन था, मोहन के पास बहुत सारे गुलाब के फूल थे परंतु सभी लोग उसके फूलों को खरीदना पसंद नहीं करते थे।
मोहन यह समझ नहीं पाता था कि वह क्या कारण है जिसकी वजह से लोग उसके फूलों को नहीं खरीदते हैं।
मोहन ने जब लोगों से यह पूछा तो मोहन को पता चला कि उनको कुछ और फूलों की जरूरत थी परंतु उनके पास इतने पैसे नहीं थे और मोहन यह समझ गया कि फूलों की डिमांड कम हो गई है।
डिमांड का मतलब यही होता है कि लोग कितना एक प्रोडक्ट या भी सर्विस को खरीदना तो चाहते हैं परंतु एक अनिश्चित कीमत पर।
यदि लोग ज्यादा कुछ और खरीदना चाहते हैं तो मार्केट में उसकी डिमांड बढ़ जाती है, तो वही अगर कम खरीदना चाहते हैं तो मार्केट में उसकी डिमांड कम हो जाती है।
मोहन ने भी यह समझ लिया था कि उससे अपनी फूलों की डिमांड बढ़ानी है तो उसे अपनी प्रोडक्ट की क्वालिटी और प्राइस को अच्छा बनाना होगा और इसके लिए अपने फूलों की रेट को कम कर दिया और उनकी क्वालिटी और खुशबू को और भी बेहतर बनाने का प्रयत्न करने लगा।
मोहन की कहानी से हमें यह समझ आता है कि किसी बिजनेस के लिए डिमांड कितना महत्वपूर्ण फैक्टर हो सकता है।
Mang Kya Hai (What is Demand in Hindi):
हमारे अर्थशास्त्र में Demand यानी कि मांग शब्द किसी भी माल या फिर सेवा को खरीदने की इच्छा या समर्थन को प्रदर्शित करता है इसमें हम किसी वस्तु या सेवा को शामिल किया जाता है जैसे कि खाने पीने की चीजें, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक सामान, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, यातायात या फिर मनोरंजन।
मांग को प्रभावित करने के अनेक कारण हो सकते हैं जैसे आय, मूल्य का निर्धारण, पसंदीदा वस्तु, प्राथमिकताएं, विकल्प का होना, जनसंख्या वृद्धि, आयु वितरण आदि।
उदाहरण:
डिमांड यानी की मांग के बारे में अधिक जानकारी के लिए आपको एक उदाहरण से समझाते हैं।
मान लीजिए एक फल बेचने वाला दुकानदार है, जो अपनी दुकान पर 100 किलो आम रखता है और उनके आम की कीमत ₹50 प्रति किलो है यदि कोई ग्राहक 5 किलो आम खरीदना है तो उन्हें ₹250 देने पड़ेंगे।
अब सोचिए कि अगले दिन कोई ग्राहक अपने एक दोस्त के साथ आता है और उसी दुकानदार के पास जाता है और उन्होंने भी 5 किलो आम खरीदने का फैसला किया है परंतु इस बार आम की कीमत ₹50 प्रति किलो होने के साथ-साथ एक छोटी सी छूट यानी कि डिस्काउंट भी मिलती है।
यदि ग्राहक 5 किलो के आम खरीदना है तो उन्हें ₹225 देने होंगे, तो इस प्रकार से उस दुकानदार के पास आम की मांग बढ़ जाती है। यहां कस्टमर की मांग भी आम की कीमत में कमी लाने के लिए आरंभिक मूल्य कीमत से कम होने के कारण बढ़ जाती है।
इस उदाहरण से हम समझ सकते हैं कि मांग किस प्रकार से आरंभिक मूल्य और अन्य प्रकार की उपलब्धि आर्थिक प्रावधानों के आधार पर निर्धारित की जा सकती है।
मांग की परिभाषा (Mang Ki Paribhasha):
मेयर्स के अनुसार,” वस्तु की मांग उन मात्राओं का एक कार्यक्रम है जिन्हें क्रेता सभी संभव कीमतों पर किसी एक समय मे तत्काल खरीदने के इच्छुक होते है।”
बेन्हम के शब्दों मे,” एक दिये गये मूल्य पर किसी भी वस्तु की मांग वस्तु की वह मात्रा है जो उस कीमत पर समय की हर इकाई मे खरीदी जाएगी।
मांग के प्रकार क्या है (Mang Ke Prakar Kya Hai):
मांग के प्रकार मुख्य रूप से तीन हैं:
- मूल्य मांग (Price Demand)
- आय मांग (Income Demand)
- आड़ी मांग (Cross Demand)

मूल्य मांग (Price Demand):
मूल्य मांग जिसे हम Price Demand के रूप में भी जानते हैं जिसका अर्थ होता है उत्पाद या फिर सेवा का मूल्य और उसकी मांग के बीच संबंध बताना।
मूल्य मांग की मदद से हमें यह पता चलता है कि किसी भी उत्पाद या फिर सेवा के मूल्य में परिवर्तन होने पर उसकी मांग पर कितना परिवर्तन हो सकता है।
यह आमतौर पर मूल्य बढ़ने से उत्पाद की मांग में कमी होती है तो वही मूल्य घटने से मांग भी बढ़ जाती है, उत्पादों के मूल्य मांग को समझना व्यवसायियों के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है।
क्योंकि इससे उन्हें मूल्य का निर्धारण करने में और उत्पाद को विस्तृत और बेचने के लिए निर्धारित करते समय सावधान रहना पड़ता है।
मूल्य मांग के परिणाम को निर्धारित करने में उपभोक्ताओं की पसंद और नापसंद, आय स्तर, उपलब्ध विकल्पों की उपलब्धि और व्यापार के माहौल जैसी कई तथ्य मौजूद हैं।
इन सभी तथ्यों को समझ कर और उनका इस्तेमाल करके सभी व्यवहार के मूल्य को निर्धारित करने और उनके लक्ष्य को प्राप्त करने का फैसला लेना चाहिए।
उदाहरण:
उदाहरण के लिए मान लीजिए कि एक शहर में एक आम का मूल्य ₹100 प्रति किलोग्राम है और सभी लोगों के द्वारा 1000 किलोग्राम के आम खरीदे जाते हैं।
यदि आम का मूल्य ₹120 प्रति किलोग्राम हो जाता है तो इस स्थिति में आम का मांग कम हो जाएगा क्योंकि लोगों को अब आम खरीदने के लिए पैसे बचाने होंगे।
और ठीक इसके विपरीत यदि आम का मूल्य ₹80 प्रति किलोग्राम हो जाता है तो ऐसी स्थिति में आम की मांग बढ़ जाएगी क्योंकि अब ज्यादा आम खरीदने के लिए पैसे बचेंगे।
इस धारण के जरिए हमने समझा कि मूल्य मांग के संबंध को प्रकट करता है और हमें बताता है कि उत्पाद की मूल्य में परिवर्तन से उत्पाद की मांग में किस तरीके से प्रभावित हो सकती है।
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आय मांग (Income Demand):
आय मांग जिसे हम Income Demand के रूप में भी जानते हैं इसका अर्थ होता है कि किसी व्यक्ति या समाज की आय और मांग के बीच संबंध को प्रदर्शित करता है।
आय मांग से हमें यह पता चलता है कि व्यक्ति या समाज में परिवर्तन होने पर उनकी मांग पर कितना परिवर्तन होगा।
आय मांग के परिणाम को निर्धारित करने के लिए उपभोक्ताओं की पसंद या नापसंद, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन, नए सामाजिक और आर्थिक साधनों की उपलब्धि, आर्थिक नीतियां और व्यवस्था में बदलाव के विषय शामिल होते हैं।
इन सभी तथ्यों को समझ कर और उनका उपयोग करके नीति निर्माताओं को आय निर्धारित करने और आर्थिक लक्ष्य को हासिल करने के लिए सही फैसला लेना चाहिए।
सामान्य तौर पर आय बढ़ने से उपभोक्ताओं की मांग भी बढ़ जाती है क्योंकि उनके पास ज्यादा पैसे होते हैं जिससे कि वह ज्यादा सामान खरीद पाते हैं।
जबकि आय में कमी होने पर मांग में भी कमी हो जाती है क्योंकि उपभोक्ताओं के पास खर्च करने के लिए कम पैसे होते हैं जिससे कि वे कम सामान खरीदते हैं।
इसी प्रकार से समाज में आय के परिवर्तन होने से व्यापार उद्योग और आर्थिक विकास पर भी इसका प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव दिखाई पड़ता है।
आय मांग के संबंध को समझना और उसका सही तरीके से उपयोग करके आर्थिक नीतियां और व्यवस्थाओं के निर्माण और आर्थिक विकास के सहयोग में लगाना बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है।
उदाहरण:
इसका एक अच्छा उदाहरण यह है कि यदि किसी व्यक्ति की आय बढ़ती है तो वह कार खरीदने के लिए धन से लाभान्वित हो सकता है और उसे कार खरीदने के लिए तैयार होने की वृद्धि होती है।
इस प्रकार के जब भी लोगों की आय में वृद्धि होती है तो वह अपनी खर्चो की क्षमता भी बढ़ा देते हैं। वे उत्पादों के लिए अधिक धन खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं।
आड़ी मांग (Cross Demand):
आड़ी मांग जिसे Cross Demand के नाम से भी जाना जाता है यह एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें उत्पाद की मांग किसी दूसरे उत्पाद की कीमत के साथ प्रभावित हो जाती है।
मतलब की जब भी किसी उत्पात कीमत में बदलाव होता है तो दूसरे उत्पाद की मांग पर भी इसका प्रभाव दिखाई पड़ता है।
उदाहरण:
इसका एक प्रमुख उदाहरण यह है कि जब भी आप एक स्मार्टफोन खरीदते हैं तो स्मार्टफोन के साथ स्मार्ट फोन के कवर की मांग हो सकती है।
यदि स्मार्टफोन की कीमत में बढ़ोतरी होती है तो इसका प्रभाव भी हमें स्मार्ट फोन के कवर पर भी दिखाई पड़ता है।
क्योंकि स्मार्टफोन की कीमत बढ़ने से लोग पैसे कम खर्च करने वाले कवर में किसी भी प्रकार की रुचि नहीं रखते इसलिए कवर की मांग भी कम हो जाती है।
तो इस प्रकार से आड़ी मांग (Cross Demand) का प्रभाव उत्पाद की मांग और उसकी कीमतों पर प्रत्यक्ष रुप से दिखाई देता है।
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Mang Vakra Kya Hai (What is Demand Curve in Hindi):
Demand Curve जिसे हम मांग फलन के रूप में भी जानते हैं यह एक प्रकार का ग्राफिकल दृष्टिकोण होता है, जिसे उत्पाद की मांग के अनुरूप बनाया जाता है।
यह उत्पाद की मांग को उत्पाद की कीमत के साथ संबंधित करके रखता है और इस तरह की रूपरेखा बनाने के लिए मांग को विभिन्न स्तरों पर उत्पाद की कीमत के आधार पर बनाकर उत्पाद की मांग को दर्शाने के लिए एक लकीर भी बनाई जाती है।
यानी कि “Demand Curve” उत्पाद की मांग को प्रदर्शित करती है जो विभिन्न कीमतों पर संभव होती है और इस रूपरेखा में उत्पाद की कीमत अधिक होने पर उसकी मांग भी कम हो जाती है।
उत्पाद की कीमत कम होने पर मांग तो बढ़ जाती है, इस रूपरेखा की मदद से विपणन विश्लेषक उत्पाद की मांग और उससे संबंधित कीमतों के बीच संबंध को अधिक स्पष्ट रूप से हम समझ सकते हैं और इस प्रकार से उत्पाद को आवश्यकता के अनुरूप उसकी कीमत का निर्धारण कर सकते हैं।
Mang Falan Kya Hai (What is Demand Function in Hindi):
मांग फलन जिसे हम Demand Function के रूप में भी जानते हैं यह एक पूर्ण व्यावसायिक एक उपकरण होता है जो उत्पाद की मांग के आधार पर उनकी कीमतों का निर्धारण करता है।
इसके साथ ही यह उत्पाद की मांग के संबंध में उसकी कीमत का निर्धारण करता है। आम तौर पर देखा जाए तो Demand Function में उत्पाद की कीमत के आधार पर ही मांग को व्यक्त करने के लिए कुछ विभिन्न मापदंड शामिल किए गए हैं।
जैसे कि: उत्पाद की कीमत, उत्पाद की समय सीमा, विपणन संचार, विपणन योजना आदि।
यह मापदंड उत्पाद की मांग के आधार पर ही इसकी कीमतों का निर्धारण करने में सहायता प्रदान करते हैं।
मांग का सिद्धांत क्या है (Mang Ka Sidhant):
मांग का सिद्धांत इस संबंध को प्रदर्शित करता है जो मूल्य और वस्तु या फिर सेवा के मात्रा के मध्य होता है और जिसे उपभोक्ता खरीदने के लिए तैयार रहता है।
यह सिद्धांत उपभोक्ताओं की खरीद के निर्णय को समय समझाने के लिए मूल्य और मांग के बीच के संबंध को वर्णन करता है। यह हमें बताता है कि अन्य सभी कारक निरंतर रहते हैं सब उपभोक्ताओं की मांग वह वस्तु या सेवा जितने के लिए तैयार है उतना ही कम होगा जितना की वस्तु या सेवा का मूल्य बढ़ेगा।
इसके साथ ही यह मांग और मूल्य की बीच संबंध का एक नीचे की ओर झुकती हुई मांग की रेखा को भी प्रदर्शित करता है सिद्धांत में अन्य कारकों को भी ध्यान में रखा जाता है जो उपभोक्ताओं के व्यवहार और मांग को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं।
जैसे कि: आय में बदलाव, पसंद और प्राथमिकताएं, विकल्पों की उपलब्धता, संबंधित वस्तुओं की कीमतें।
मांग को प्रभावित करने वाले तत्व (Mang Ko Prabhavit Karne Wale Tatva):
मांग को प्रभावित करने वाले तत्व इस प्रकार से हैं:
मूल्य:
मूल्य किसी भी वस्तु या सेवा की मांग पर सीधा प्रभाव डालता है जब भी मूल्य बढ़ता है तो उपभोक्ताओं के उस वस्तु को खरीदने की क्षमता कम हो जाती है तो वही मूल्य घटने पर उस वस्तु को खरीदने की क्षमता भी बढ़ जाती है।
आय:
उपभोक्ताओं को अपनी आय के अनुसार खरीदने की क्षमता होती है जो कि एक महत्वपूर्ण तत्व है जब भी उपभोक्ताओं की आय बढ़ती है तो वे अधिक वस्तुएं और सेवाएं खरीदने के लिए तैयार रहते हैं तो वहीं यदि उनकी आय में कमी होती है तो वे वस्तुएं या फिर सेवाएं खरीदने के लिए कमी करते हैं।
पसंद और प्राथमिकताएं:
यह भी देखा गया है कि उपभोक्ताओं की पसंद और उनकी प्राथमिकताएं खरीद के नियमों को प्रभावित करने में सक्षम होती है, उनकी उपस्थिति में वे वही वस्तुएं खरीदते हैं जो उन्हें पसंद होती है और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करती है।
विकल्प:
जब भी उपभोक्ताओं के पास एक से अधिक विकल्प मौजूद होते हैं तो वे अपनी मांग के लिए उन वस्तुओं को चुनते हैं जिनसे उन्हें अधिक लाभ प्राप्त होता है अतः विकल्प का होना मांग को प्रभावित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है।
समग्र मांग क्या है (Samagra Mang Kya Hai):
समग्र मांग जिसे Aggregate Demand भी कहते हैं यह एक ऐसा शब्द है जो समूह की जनता की समूची मांग को प्रदर्शित करने में मदद करता है। यानी कि एक ऐसा समूह या समुदाय के लोगों के लिए संबंधित होता है जो उनके सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य और अन्य प्रकार के सामान्य विकास से जुड़े हुए होते हैं।
समग्र मांग में विभिन्न उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं को भी सम्मिलित किया जाता है जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, रोजगार, खाद्य, सुरक्षा, आवास, जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, सुरक्षा आदि।
इसके अध्ययन और विश्लेषण से सामाजिक न्याय समाज और आर्थिक विकास के क्षेत्रों में नीतियों और कार्यक्रम के विकास में काफी सहायता मिलती है।
उदाहरण:
एक गरीब परिवार जो ना केवल आर्थिक रूप से कमजोर है बल्कि अनेक समस्याओं से पीड़ित भी है जैसे कि उनके बच्चों की शिक्षा की समस्या, स्वास्थ्य की समस्या, आवाज की कमी, खाद्य सुरक्षा की समस्या।
परिवार की समग्र मांग उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, खाद्य और रोजगार के लिए उचित नीतियों और कार्यक्रम की मांग होती है।
दूसरा उदाहरण:
एक समुदाय जिसके सामने पानी की समस्या है, इस समुदाय को समग्र मांग जल संरक्षण के लिए उचित नीतियों और कार्यक्रमों की आवश्यकता है। जैसे कि विवेकपूर्ण उपयोग और जल संरक्षण की शिक्षा, बांध और तालाबों का निर्माण, रोजगार के स्रोतों का विकास और जल संरक्षण और संचय के तकनीकों का उपयोग करना।
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Conclusion:
तो इस प्रकार से आपने समझा कि Mang Kya Hai, Mang Ki Paribhasha, Mang Ke Prakar, Mang Falan Kya Hai, Mang Ka Sidhant और मांग को प्रभावित करने वाले तत्व क्या हैं।
हम उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा लिखा गया यह आर्टिकल आपको पसंद आएगा अगर आपके मन में इस विषय के प्रति कोई भी सवाल है तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

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