आदिकाल से लेकर वर्तमान तक मुद्रा के स्वरूप में बहुत अधिक परिवर्तन हुए हैं। अतः इन परिवर्तनों के कारण मुद्रा का कोई ऐसा वर्गीकरण नहीं किया जा सकता जो सभी गुणों में प्रचलित मुद्राओं का सही-सही चित्र प्रस्तुत कर सके।
यदि हम एक देश में प्रचलित मुद्रा तथा उसको पूर्ती के बारे में जानना चाहते हैं, तो हमें उसके विभिन्न प्रकारों को समझना होगा।
आज हम आपको इस आर्टिकल में मुद्रा के प्रकार (Mudra Ke Prakar) के बारे में पूरी जानकारी देंगे
मुद्रा के प्रकार (Mudra Ke Prakar):
मुद्रा के प्रकार (Mudra Ke Prakar) कुछ इस तरह से है:
- वास्तविक मुद्रा और हिसाब की मुद्रा,
- विधिग्रा मुद्रा और ऐच्छिक मुद्रा,
- धातु मुदा और पत्र- मुद्रा
- सुलभ मुद्रा और दुर्लभ मुद्रा
- सस्ती मुद्रा और महँगी मुद्रा
(1) वास्तविक मुद्रा –
किसी देश में सरकार द्वारा प्रचलित मुद्रा ही वास्तविक मुद्रा कहलाती है। अर्थात् वास्तविक मुद्रा वह होती है जो किसी देश में वास्तव में प्रचलित होती है। सिक्के तथा नोट वास्तविक होते है। वास्तविक मुद्रा तथा चलन में कोई अन्तर नहीं है।
भारतवर्ष में 5 पैसे से लेकर 1000 रुपये तक के नोट सब नाविक मुद्रा के अन्तर्गत आते हैं। कौन्स ने वास्तविक मुद्रा को दो भागों में बाँटा है-
- पदार्थ मुद्रा
- प्रतिनिधि मुद्रा
पदार्थ मुद्रा: पदार्थ मुद्रा सदैव किसी न किसी पातु को बनी होती है और उसका अंकित मूल्य: धातु की मुद्रा की कीमत (या पदार्थ मूल्य) के बराबर होता है।
प्रतिनिधि मुद्रा: प्रतिनिधि मुद्रा चलन में होती है किन्तु रूप से धातु की नहीं होती है। प्रचलन करते समय उसके पीछे शत-प्रतिशत स्वर्ण कोष रखा जाता है जिसका प्रतिनिधित्व है। इसलिए प्रतिनिधि मुद्रा में शक्ति का सच नहीं किया जा सकता है।
(2) हिसाब की मुद्रा:
हिसाब की मुद्रा से आशय, उस मुद्रा से होता है जिसमें सभी प्रकार के हिसाब- करते हैं। इसी मुद्रा में ऋणों की मात्रा कीमतों एवं क्रय शक्ति को किया जाता है। यह वश्यक नहीं है कि देश को वास्तविक मुद्रा ही हिसाब-किताब की मुद्रा हो।
संकटकाल में ये दोनों अलग- भाग हो सकती है। जैसे—प्रथम महायुद्ध के पश्चात् (सन् 1923) जर्मनी में वास्तविक मुद्रा तो मार्क थी, किन्तु सब किताब को मुद्रा अमेरिकन डालर था फेंक थी।
इसका कारण यह था कि जर्मन मार्ककी तुलना में इन मुयाओं का मुख्य अधिक स्थिर थे। प्रायः प्रत्येक देश की वास्तविक मुद्रा तथा हिसाब-किताब की मुद्रा एक रेणी है।
जैसे- भारत में रुपया और अमेरिका में डालर वास्तविक सुपर भी है और हिसाब-किताब को मुद्रा भी।
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ऐच्छिक मुद्रा: यह मुद्रा है जो भुगतान के साधन के रूप में जनता द्वारा स्वीकार की जाती है। कोई भी व्यक्ति भुगतान के रूप में इसे स्वीकार करने से इन्कार नहीं कर सकता है
और यदि वह ऐसा करता है। सरकार उसको दण्डित कर सकती है। इसीलिए इसे विधिग्राह्य मुद्रा कहते हैं। विधिग्राह्य मुद्रा को भी श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
(अ) सीमित विधिग्राह्य मुद्रा: यह वह मुद्रा होती है, जिसको एक निश्चिक सीमा तक ही स्वीकार करने के लिए किसी व्यक्ति को बाध्य किया जा सकता है। इस निश्चित सीमा से अधिक मुद्रा लेने से व्यक्ति इन्कार कर न्यायालय की शरण लेकर उसको बाध्य नहीं किया जा सकता।
जैसे- भारत में 5 पैसे से लेकर 25 पैसे तक के सिक्के केवल 25 रुपये तक हो विधिग्राह्य हैं। अतः यदि किसी व्यक्ति को इन सिक्कों की 25 रुपये से अधिक की रेजगारी दी जाती है,
तो वह इसे अस्वीकार कर सकता है। हाँ, वह 25 रुपये तक इन सिक्कों को स्वीकार करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है।
(ब) असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा: यह वह मुद्रा है, जिसे कोई भी व्यक्ति किसी भी सीमा तक (एक बार में) भुगतान के रूप में स्वीकार करे के लिए बाध्य है।
यदि कोई व्यक्ति असीमित मात्रा में इसे स्वीकार करने से इन्कार कर दें तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सकती है तथा उसको दण्डित किया जा सकता है।
जैसे भारत में 50 पैसे से लेकर 1,000 रुपये तक के नोट असीमित विधिग्राह्य मुद्रा है।
(2) ऐच्छिक मुद्रा: यह वह मुद्रा होती है, जिसे व्यक्ति प्रायः अपनी इच्छा से स्वीकार कर लेता है, किन उसके अस्वीकार करने पर कानून द्वारा उसे इस मुद्रा को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता जैसे चेक, इण्डियाँ विनिमय-पत्र इत्यादि ऐच्छिक मुद्रा कहे जा सकते हैं।
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धातु मुद्रा और पत्र-मुद्रा (Metallic Money and Paper Money):
धातु-मुद्रा- मुद्रा धातु की बनी होती है, तो उसे धातु मुद्रा या सिक्का कहते हैं। प्राचीन समय में धातु-मुद्रा विशेष रूप से चलन में थी। प्रारम्भ में प्रायः धातु के टुकड़ों पर राजा, महाराजा या नवाब का कोई ठप्पा या चिन्ह अंकित कर दिया जाता था,
किन्तु वर्तमान में एक निश्चित आकार-प्रकार एवं तौल वाली मुद्रा जिस पर राज्य का वैधानिक चिन्ह अंकित होता है, धातु-मुद्रा कहलाती है धातु-मुद्रा में कौन-सी धातु कितनी मात्रा में होगी ?
यह द्वारा निर्धारित किया जाता है। धातु मुद्रा दो प्रकार की होती हैं-
(अ) प्रामाणिक सिक्का – प्रामाणिक सिक्का को प्रधान, पूर्णकाय तथा सर्वांग मुद्रा भी कहते हैं। ये सिक्के प्रायः वादी या सीने के बनाये जाते हैं जो कानून द्वारा निश्चित वजन तथा शुद्धता के होते हैं। प्रामाणिक सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है-
(1) यह देश की प्रधान मुद्रा होती है।
(2) यह असीमित विधि ग्राह्म मुद्रा होती है।
(3) इस सिक्के पर अंकित मूल्य यथार्थ या निहित मूल्य के बराबर होता है।
(4) इसका टंकमण अथवा ढलाई स्वतंत्र होती है।
प्रामाणिक सिक्के के गुण प्रामाणिक सिक्के के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं- (1) प्रामाणिक सिक्कों के प्रति जनता का अधिक विश्वास बना रहता है,
Conclusion:
यह है Mudra Ke Prakar उम्मीद करते है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी

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