इस आर्टिकल में हम आपको लाभ के बारे में पूरी जानकारी देंगे जैसे कि:
- लाभ क्या है (Profit in Hindi)
- लाभ कि परिभाषा क्या है (Definition of Profit in Hindi)
- लाभ के प्रकार (TYPES OF PROFIT IN HINDI)
- लाभ की दर में भिन्नता के कारण
लाभ क्या है (Profit in Hindi):
राष्ट्रीय आय का वह भाग जो साहसी को उसकी सेवा के बदले दिया जाता है, लाभ कहलाता है। कुल उत्पादन में से लगान, मजदूरी एवं ब्याज का भुगतान करने के बाद जो कुछ बचता है, वही साहसी को लाभ है रूप में दे दिया जाता है।
इस प्रकार कुल उत्पादन तथा उत्पादन की कुल लागत में जो अन्तर होता है, लाभ राष्ट्रीय आय का अकेला ऐसा भाग है जो ऋणात्मक भी हो सकता है।
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लाभ कि परिभाषा क्या है (Definition of Profit in Hindi):
लाभ को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-
स्पीट के अनुसार,
“सामान्यतया लाभ जोखिम उठाने का भुगतान है
“लाभ साहसी के कार्य का प्रतिफल है अथवा यह जोखिम, अनिश्चितता प्रवर्तन के लिए भुगतान है”
मार्शल के शब्दों में,
“जोखिम तथा अनिश्चितता के लिए दिये जाने वाले प्रतिफल को लाभ कहते हैं की। वह वस्तुओं की कुल बिक्री से प्राप्त होने वाली आय तथा उसकी उत्पादन लागत के अन्तर के बराबर होता है
हेनरी ग्रेसन के शब्दों में,
“लाभ को नवप्रवर्तन का पुरस्कार, जोखिम उठाने का पुरस्कार तथा बाजार में अपूर्ण प्रतियोगिता होने के कारण उत्पन्न होने वाली अनिश्चितताओं का परिणाम कहा जा सकता है। इनमें कोई दशा अथवा दोनों दशाओं के सामूहिक प्रभाव के कारण आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है”
लाभ की उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि-
- लाभ साहस का पुरस्कार है।
- लाभ का पहले से निश्चित समझौते के अन्तर्गत भुगतान नहीं होता है।
- यह एक अवशिष्ट बचत होती है जो साहसी को उत्पादन के अन्य साधनों के पुरस्कार लाभ के रूप में प्राप्त होती है।
- लाभ अनिश्चित होता है।
- लाभ ऋणात्मक भी हो सकता है। अर्थात लाभ-हानि के रूप में बदल सकता है।
- यह जोखिम उठाने, अनिश्चितता वहन करने एवं नवप्रवर्तनों को उत्पादन में लागू करने का पुरस्कार होता है।
लाभ के प्रकार (TYPES OF PROFIT IN HINDI):
‘लाभ’ शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है-
- कुल लाभ
- शुद्ध लाभ
कुल लाभ:
सामान्य अर्थ में, जिसे हम लाभ कहते हैं, वह कुल लाभ ही होता है। साहसी को वस्तु के उत्पादन के लागत के ऊपर जो अतिरिक्त बचत प्राप्त होती है, उसे ही कुल लाभ कहा जाता है।
अर्थात् उत्पादन के जैसे, भूमि के लगान, श्रमिकों की मजदूरी, पूँजी की व्याज, प्रबंधक का वेतन तथा कर की राशि को फर्म तब से प्राप्त आय में से निकाल देने के बाद जो शेष बचता है, उसे ही कुल लाभ’ कहते हैं।
(1) घिसावट एवं संरक्षण व्यय: उद्योग में जो मशीनें लगी रहती हैं, वह कुछ समय के बाद सिकर जाती हैं। उनकी बीच-बीच में मरम्मत एवं सुधार भी कराने । ते हैं। इनके लिए सेवायोजक कारखाने में एक कोष की स्थापना भदा है, जिसे ‘घिसावट व्यय कोष’ कहा जाता है।
(2) अस्पष्ट लागतें: जब कोई साहसी किसी वस्तु का उत्पादन करता है तब वह उत्पादन के कुछ धन अपने पास से लगाता है। उदाहरणार्थ, वह अपनी भूमि पर कारखाना लगा सकता है, वह स्वयं अपने पास पूंजी लगा सकता है अथवा वह स्वयं प्रबंधक का कार्य कर सकता है।
(3) अव्यक्तिगत लाभ: इसके अन्तर्गत दो प्रकार के लाभों को सम्मिलित किया जाता है- प्रथम, काधिकारी लाभ और द्वितीय, आकस्मिक लाभ। कभी-कभी साहसी को वस्तु-विशेष के उत्पादन में एकाधिकार ब्य हो जाती है। ऐसी स्थिति में साहसी वस्तु की कीमतों में वृद्धि करके एकाधिकारी लाभ कमाता है।
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शुद्ध लाभ:
शुद्ध लाभ, साहसी के जोखिम उठाने का पुरस्कार होता है। यह लाभ साहसी को तीन प्रकार के कार्यों के दिया जाता है-
(1) जोखिम उठाने का पुरस्कार-
साहसी का एक महत्वपूर्ण कार्य व्यवस्था में होने वाली हानि का खिम उठाना है। वह अपने व्यवसाय को शुरू करने के पहले उत्पादन लागत एवं आय का अनुमान लगाता है वस्तु का उत्पादन करने के बाद यदि उसका अनुमान गलत हो जाता है तो उसे हानि होती है। इस हानि के जोखिम उठाने के बदले में उसे पुरस्कार मिलता है। यह पुरस्कार साहसी के शुद्ध लाभ के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है।
(2) नव प्रवर्तन को लागू करने के लिए पुरस्कार-
साहसी उत्पादन के क्षेत्र में नई-नई तकनीक एवं मशीनों का प्रयोग करके नई-नई वस्तुओं का उत्पादन करता है। इन नई तकनीकों को उत्पादन के क्षेत्र में लागू करने के लिए भी उसे पुरस्कार मिलता है। यह नव प्रवर्तन का पुरस्कार भी साहसी के शुद्ध लाभ में सम्मिलित रहता है।
(3) कुशल व्यवस्थापन का पुरस्कार-
साहसी किसी वस्तु का उत्पादन करने के लिए विभिन्न स जैसे भूमि, श्रम, पूँजी और संगठन को एकत्रित करता है। वह ‘उनके बीच इस प्रकार का अनुकूलन स्थापित करता है कि वस्तु की उत्पादन लागत न्यूनतम हो जाती है। साहसी को इस कुशल व्यवस्थापन के पुरस्कार प्राप्त होता है। अर्थात्
शुद्ध लाभ = कुल लाभ जोखिम उठाने का पुरस्कार + नवप्रवर्तन को लागू करने के लिए पुरस्कार + कुशल व्यवस्थापन का पुरस्कार।
सामान्य लाभ (NORMAL PROFIT AND ABNORMAL PROFIT):
सामान्य लाभ, वह न्यूनतम लाभ होता है जो साहसी को उत्पादन में बनाये रखने के लिए अवश्य ही मिलना चाहिए। यदि साहसी को अपने व्यवसाय में सामान्य लाभ नहीं मिलेगा, वो वह जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं होगा। इस लाभ को ही सामान्य लाभ के रूप में जाना जाता है।
स्टोनियर व हेग के अनुसार, “सामान्य लाभ, वे लाभ होते हैं जो एक साहसी को उद्योग में बनाये रखने हैन्सन के शब्दों में, “सामान्य लाभ का अर्थ, उस भुगतान से है, जो साधनों को उत्पादन विशेष में बनाये रखने के लिए आवश्यक होता है ।”
असामान्य लाभ:
सामान्य लाभ से जो अधिक लाभ प्राप्त होता है उसे साहसी का असामान्य लाभ कहा जाता है। यह असामान्य लाभ साहसियों को उनकी विशिष्ट योग्यता के कारण प्राप्त होता है। यह असामान्य लाभ सीमांत साहसी को प्राप्त नहीं होता है। यह वस्तु के उत्पादन लागत के ऊपर बचत होती है। प्रो. हैन्सन के अनुसार, “सामान्य लाभ के अतिरिक्त जो लाभ प्राप्त होता है उसे असामान्य लाभ कहते. हैं
प्रो. वाकर के शब्दों में, “लाभ योग्यता का पुरस्कार है।”
यह सर्वविदित है कि सभी साहसी एक समान कार्यकुशल नहीं होते, जिससे बाजार में वस्तु का मूल्य सीमांत साहसी के उत्पादन लागत के आधार पर निर्धारित होता है। सीमांत साहसी को सामान्य लाभ प्राप्त होता है।
सीमांत साहसी के पूर्व के साहसियों की उत्पादन लागत उनकी अधिक योग्यता के कारण कम होती है। परिणामस्वरूप साहसियों को लागत पर आय का अतिरेक या आधिक्य प्राप्त होता है और यही आधिक्य उनका असामान्य लाभ होता है। इस प्रकार, असामान्य लाभ साहसी को योग्यता का पुरस्कार है।
लाभ की दर में भिन्नता के कारण:
- उत्पादन लागत में अन्तर,
- जोखिम में अन्तर,
- प्रतियोगिता में अन्तर,
- प्रबंध की योग्यता,
- परिस्थितियों में अन्तर,
- विदेशी प्रतियोगिता,
- विज्ञापनों का प्रभाव,
- आकस्मिक परिवर्तन,
- कार्य की परिस्थितियों में अन्तर,
- आधुनिकीकरण |
लाभ की दर में भिन्नता के कारण (CAUSES OF DIFFERENCE IN THE RATE OF PROFITS):
लाभ की दर में भिन्नता के प्रमुख कारण निम्नांकित हैं-
(1) उत्पादन लागत में अन्तर- जिस व्यवसाय में उत्पादन लागत कम होती है, वहाँ लाभ की मात्रा अधिक होती है। इसके विपरीत, जिस व्यवसाय में उत्पादन लागत अधिक होती है, वहाँ लाभ की मात्रा कम होती है।
(2) जोखिम में अन्तर – जिस व्यवसाय में जोखिम की अधिक होती है, वहाँ लाभ को मात्रा अधिक होती है। इसके विपरीत जिस व्यवसाय में जोखिम की मात्रा कम होती है, वहाँ राम की मात्रा कम होती है।
(3) प्रतियोगिता में अन्तर जिस व्यवसायों में प्रतियोगिता अधिक होती है, वहाँ लाभ की मात्रा कम होती है। इसके विपरीत, व्यवसायों में प्रतियोगिता कम होती है, वहाँ लाभ की मात्रा भी कम होती है।
(4) प्रबंधक की योग्यता- जिस व्यवसाय का संचालन तथा अनुभवी प्रबंधक करते हैं, वहाँ अधिक लाभ होता है। इसके विपरीत, अयोग्य एवं अनुभवहीन अंधकों द्वारा संचालन कार्य होने से हानि की संभावना रहती है।
(5) परिस्थितियों में अन्तर जिस उद्योग के पास यातायात के उन्नत साधन हो, बाजार निकट हो, माँग हो, कच्चे माल के स्रोत निकट हो, तो उसके लाभ बढ़ जाते हैं। इसके विपरीत जिन उद्योगों को यह प्राप्त नहीं होती हैं, उनको लाभ कम प्राप्त होता है।
(6) विदेशी प्रतियोगिता जिन व्यवसायों को विदेशी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है, उनको कम होता है। इसके विपरीत शासकीय संरक्षण प्राप्त व्यवसायों को अधिक लाभ प्राप्त होता है।
लाभ का आधुनिक सिद्धान्त (MODERN THEORY OF PROFIT IN HINDI):
लाभ की माँग एवं पूर्ति का सिद्धान्त (THEORY OF DEMAND AND SUPPLY OF PROFIT)
अन्य साधनों की कीमत अथवा पुरस्कार का निर्धारण उसकी माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा होता है, ठीक उसी प्रकार साहसी के लाभ का निर्धारण भी उसकी माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा होता है।
जाही की मांग साहसी को माँग उसको उत्पादकता पर निर्भर करती है। साहसी की सीमांत उत्पादकता दिनी अधिक होगी, उसकी माँग भी उतनी ही अधिक होगी। साहसी की माँग पर उसकी सीमांत उत्पादकता के अलावा निम्न बातों का भी प्रभाव पड़ता है-
साहसी की पूर्ति साहसी की पूर्ति भी अनेक तत्वों पर निर्भर करती है, जैसे-
(1) जनसंख्या का आकार,
(2) जनसंख्या में वृद्धि की दर
(3) पूंजी की उपलब्धता,
(4) व्यवसाय में जोखिम की मात्रा,
(5) देश की सामाजिक एवं राजनीतिक दशाएँ
(6) देश में आय एवं धन का वितरण,
(7) व्यवसाय में लाभ की संभावना ।

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