राजस्व (Public Finance in Hindi), अर्थ, परिभाषा, महत्व और अंतर

आज हम आपको इस आर्टिकल कि मदद से राजस्व क्या है यानी कि (What is a Public Finance in Hindi) के बारे में पूरी जानकारी देंगे.

Highlights:

  1. राजस्व क्या है (Rajasv Kya Hota Hai)
  2. राजस्व का अर्थ (Rajasv Ka Arth)
  3. राजस्व कि परिभाषा (Rajsav Ki Paribhasha)
  4. राजस्व की विषय-सामग्री
  5. राजस्व का महत्व (Importance of Public Finance in Hindi)
  6. निजी वित्त एवं सार्वजनिक वित्त (राजस्व) में समानताएं (Similarities Between Public Finance and Private Finance in Hindi)
  7. राजस्व में अंतर (Difference Between Public Finance and Private Finance in Hindi)

राजस्व क्या है (What is a Public Finance in Hindi):

सार्वजनिक वित्त का मतलब देश की राजस्व, ऋण और व्यय को विभिन्न सरकारों और क्वासी सरकारी संस्थाओं के माध्यम से प्रबंधित करना। देश की राजस्व निवेशों, करों, और अन्य राजस्व धारों से प्राप्त होती है।

सरकारी व्यय में स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं, सरकारी कर्मचारियों के वेतन, तकनीकी विकास आदि शामिल हैं। जनता देश के विकास और उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, इसलिए यह शब्द ‘सार्वजनिक वित्त’ कहा जाता है।

सार्वजनिक वित्त का प्रबंधन राज्य और केंद्रीय स्तर पर देश की जनता के हिस्से में आने वाले आय और व्यय को प्रबंधन करना है। सार्वजनिक वित्त के प्रबंधन का देश के अर्थव्यवस्था में विकास का महत्वपूर्ण भूमिका होता है, क्योंकि यह वित्तों के उपयोग पर निर्भर करता है।

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राजस्व का अर्थ (Rajasv Ka Arth):

राजस्व का अर्थ (Definition of Public Finance in Hindi):

सामान्य अर्थ में, राजस्व का अर्थ सार्वजनिक आय एवं सार्वजनिक व्यय से लिया जाता है। दूसरे शब्दों में, सार्वजनिक संस्थाओं की वित्तीय व्यवस्था को ही राजस्व कहते हैं, किन्तु यह संकुचित अर्थ है, क्योंकि इसमें सार्वजनिक ऋण का उल्लेख नहीं है; जो राजस्व का महत्त्वपूर्ण अंग है। इसके अतिरिक्त राजस्व में राज्य के वित्तीय प्रबंध का भी अध्ययन किया जाता है।

राजस्व कि परिभाषा (Rajsav Ki Paribhasha):

राजस्व की विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं। इनमें से प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं (Definition of Public Finance in Hindi):

डॉ. डॉल्टन के शब्दों में,

“राजस्व राज्य की आय और व्यय तथा इनके एक-दूसरे के साथ समायोजन से संबंधित है।”

बैस्टेबल के अनुसार,

“राजस्व का संबंध राज्य की आय एवं व्यय तथा उनके पारस्परिक संबंध एवं वित्तीय प्रशासन तथा नियंत्रण से है

आर्मिटेज के शब्दों में,

“सार्वजनिक व्यय और आय की प्रकृति और सिद्धान्तों की जाँच को राजस्व कहते है

फिण्डले शिराज के अनुसार,

“राजस्व विज्ञान को उस रीति से संबंधित किया जा सकता है जिसके अनुसार राज्य आय प्राप्त करता है और उसे व्यय करता है।

प्रो. चैपमैन के शब्दों में,

“राजस्व सार्वजनिक अर्थशास्त्र का वह विभाग है जो सरकार की आय प्राप्त करने तथा उसके प्रबंध करने की क्रिया का विवेचन करता है।”

लुट्ज के शब्दों में,

“राजस्व उन साधनों की व्यवस्था, सुरक्षा एवं वितरण का अध्ययन करता है जो सार्वजनिक कार्यों के संचालन के लिए आवश्यक होते हैं।

प्लेटन के अनुसार,

“राजस्व के अन्तर्गत सरकारी कोषों की प्राप्ति तथा व्यय की विवेचना की जाती है उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जाता है कि राजस्व के अंतर्गत उन सिद्धान्तों का अध्ययन किया जाता है जिनके अनुसार राज्य आय प्राप्त करता है तथा उसे व्यय करता है ।

इसके साथ ही सार्वजनिक प्रशासन की व्यवस्था एवं मन तथा वित्तीय प्रशासन का अध्ययन भी राजस्व का विषय है। संक्षेप में, राजस्व के अंतर्गत सार्वजनिक व्यय सार्वजनिक आय, सार्वजनिक ऋण एवं वित्तीय प्रशासन का अध्ययन किया जाता है। साथ ही संघीय वित्त भी राजस्व का विषय है ।

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राजस्व की विषय-सामग्री:

  1. सार्वजनिक आय,
  2. सार्वजनिक व्यय,
  3. सार्वजनिक ऋण,
  4. वित्तीय प्रशासन,
  5. संघीय वित्त,
  6. आर्थिक स्थिरता

राजस्व एक ऐसा विज्ञान है, जिसका संबंध सरकार की आय तथा व्यय से है। इससे राजस्व के क्षेत्र एवं विषय-सामग्री का ज्ञान हो जाता है। राजस्व की विषय सामग्री एवं क्षेत्र को निम्न बिन्दुओं के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है

(1) सार्वजनिक आय:

सरकार को आय विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है। सार्वजनिक आय विभाग के अन्तर्गत हम सार्वजनिक आय के विभिन्न स्रोतों, सिद्धान्तों, उनका उत्पादन, उपभोग तथा अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव आदि का अध्ययन करते हैं।

आय के स्रोत हैं कर, शुल्क, कीमत, विशेष कर निर्धारण, अर्थ दण्ड, उपहार, सार्वजनिक उपक्रमों से प्राप्त आय, सरकारी व गैर सरकारी बचते आदि ।

(2) सार्वजनिक व्यय:

विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आय को सरकार न के हित में निर्मित विभिन्न योजनाओं पर व्यय करती है। सार्वजनिक व्यय के अन्तर्गत हम सार्वजनिक व्यय के सिद्धान्तों, प्राथमिकताओं, सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारणों तथा उपभोग, उत्पादन, आय, रोजगार समाज में धन तथा सम्पत्ति के वितरण पर सार्वजनिक व्यय के प्रभावी का अध्ययन करते हैं। वर्तमान समय में सार्वजनिक व्यय का महत्व ‘निरन्तर बढ़ता जा रहा है।

(3) सार्वजनिक ऋण:

जब सरकार की आय व्यय से कम होती है, तो अतिरिक्त व्यय की पूर्ति हेतु सरकार द्वारा जो ऋण लिया जाता है, उसे सार्वजनिक ऋण कहते हैं।

सार्वजनिक ऋण की विषय-सामग्री के अन्तर्गत हम सार्वजनिक ऋण के उद्देश्य, सिद्धान्त, शोधन की विधियाँ व अर्थव्यवस्था पर सार्वजनिक ऋणों के प्रभाव का अध्ययन करते हैं।

(4) वित्तीय प्रशासन:

वित्तीय प्रशासन के अंतर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि किस प्रकार बजट तैयार, पारित व क्रियान्वित किया जाये ? कौन-से कर किन अधिकारियों के द्वारा किस प्रकार वसूल जायें? सार्वजनिक व्ययों का संचालन एवं नियंत्रण तथा अंकेक्षण कैसे हो? आदि किये जाये ।

(5) संघीय वित्त:

भारत में संधात्मक वित्तीय प्रणाली को अपनाया गया है। सार्वजनिक वित्त के इस उपविभाग के अन्तर्गत हम संघीय वित्त के सिद्धान्त तथा केन्द्र, राज्य एवं केन्द्र शासित राज्यों के मध्य वित्तीय के विभाजन के आधारों का अध्ययन करते हैं।

(6) आर्थिक स्थिरता:

आर्थिक स्थिरता के लिये राजकोषीय नीति को किस प्रकार से उपयोग में तारा जोन, इसका अध्ययन इस विभाग के अन्तर्गत किया जाता है। राजकोषीय नीति का देश की आर्थिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है। राष्ट्रीय आय के न्यायोचित वितरण, कीमत स्थिरता, रोजगार आदि की दृष्टि से इसका विशेष महत्व है।

निजी वित्त एवं सार्वजनिक वित्त (राजस्व) में समानताएं (Similarities Between Public Finance and Private Finance in Hindi):

(PRIVATE FINANCE AND PUBLIC FINANCE) यहाँ निजी वित्त से तात्पर्य, एक व्यक्ति की आय, उसके द्वारा किया जाने वाला व्यय एवं अतिरिक्त व्यय की पूर्ति हेतु ऋण के समायोजन से है। जब हम राजस्व और निजी वित्त व्यवस्था में तुलना करते हैं तो इनमें समानता और असमानता दोनों ही पाते हैं

निजी वित्त और सार्वजनिक वित्त (राजस्व) के बीच पायी जाने वाली समानताएँ निम्नलिखित है-

(1) आवश्यकताओं की संतुष्टि:

निजी वित्त एवं राजस्व दोनों का सामान्य उद्देश्य मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्टि करना होता है। निजी वित्त का संबंध व्यक्तिगत आवश्यकताओं की संतुष्टि करना होता है, जबकि राजस्व का संबंध सामाजिक या सामूहिक आवश्यकताओं को संतुष्टि से होता है।

(2) अधिकतम संतुष्टि का प्रयास:

निजी वित्त एवं राजस्व दोनों का ही उद्देश्य अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने का होता है। निजी वित्त में जहाँ एक विवेकशील व्यक्ति अपनी संतुष्टि को अधिकतम करना चाहता है, वहीं राजस्व में एक विवेकशील सरकार अपनी आय-व्यय के समायोजन द्वारा सामाजिक लाभ को अधिकतम करना चाहती है।

(3) चुनाव की समस्या:

निजी वित्त एवं राजस्व दोनों का हो उद्देश्य चूँकि संतुष्टि की अधिकतम करने का होता है, इसलिए दोनों में ही प्राप्त विभिन्न विकल्पों में चुनाव की समस्या का सामना करना पड़ता है ।

(4) ऋण की प्राप्ति:

निजी वित्त एवं राजस्व दोनों में ही चालू आय व्यय की तुलना में कम हो जाती है, तो ऋण लेना आवश्यक हो जाता है। यही नहीं, व्यक्ति की भाँति राज्य को भी लिए गये ऋणों की वापसी करनी पड़ती है ।

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राजस्व का महत्व:
  1. आर्थिक विकास को बढ़ाना,
  2. आर्थिक स्थिरता बनाये रखने के लिए,
  3. राष्ट्रीय आय में वृद्धि,
  4. रोजगार में वृद्धि,
  5. सामाजिक न्याय की स्थापना,
  6. आर्थिक नियोजन में महत्व,
  7. राज्य के बढ़ते हुए कार्य,
  8. उत्पादन एवं उपभोग करने में महत्व,
  9. सामाजिक क्षेत्र में महत्व,
  10. राजनीतिक क्षेत्र में महत्व ।

राजस्व का महत्व (IMPORTANCE OF PUBLIC FINANCE)

आधुनिक समय में राजस्व के बढ़ते महत्व को निम्नांकित बिन्दुओं के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) आर्थिक विकास को बढ़ाना:

अविकसित देशों में आर्थिक विकास को तीव्र करने में राज की महत्वपूर्ण भूमिका है। चूँकि इन देशों में आर्थिक साधनों की कमी रहती है। इसलिए सरकार सार्वजनिक आप के अन्तर्गत करों से आर्थिक साधन प्राप्त कर सकती है तथा सार्वजनिक व्यय के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने के लिए उनका विनियोग किया जा सकता है

(2) आर्थिक स्थिरता:

आर्थिक स्थिरता बनाये रखने के लिए अर्थव्यवस्था में व्यापार चक्र (तेजी व मन्दी) के कारण आर्थिक स्थिरता नहीं रह पाती और उत्पादन, रोजगार तथा अन्य व्यापारिक क्रियाओं पर इसका प्रतिकूल प्रभाव चढ़ता है।

(3) राष्ट्रीय आय में वृद्धि :

राजस्व की नीतियों के द्वारा राष्ट्रीय आय में वृद्धि भी की जा सकती है। यदि की इस प्रकार की है कि बचत और विनियोग को प्रोत्साहित किया जा सकता है तो इससे उत्पादन और राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। इसी प्रकार यदि सार्वजनिक ऋण को उत्पादक कार्यों पर व्यय किया जाता है तो इससे भी राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। यदि राजस्व की क्रियाओं से निजी विनियोग प्रोत्साहित होते हैं तो इससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।

(4) रोजगार में वृद्धि:

राजस्व की क्रियाओं से देश में रोजगार में भी वृद्धि की जा सकती है। यदि (सका करारोपण प्रणाली इस प्रकार की है तो उससे ऐसे उद्योग प्रोत्साहित होते हैं जो रोजगार प्रधान हैं, इससे रोजगार में वृद्धि की जा सकती है। इसी प्रकार सार्वजनिक व्यय के द्वारा भी रोजगार में वृद्धि की जा सकती है, जैसे सरकार अकाल और सूखे की स्थिति में राहत कार्यों के द्वारा लोगों को रोजगार प्रदान कर सकती है।

(5) राजनीतिक क्षेत्र में महत्व:

राजस्व का महत्व राजनीतिक क्षेत्र में इसलिए भी हैं कि राजस्व की क्रियाओं की प्रतिक्रिया समाज एवं राजनीतिक परिस्थितियों पर होती है। प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार का कारण वहाँ की अप्रचलित कर व्यवस्था ही थी जिसके कारण जनता के उपभोग को नियंत्रित नहीं किया जा सकता था। फ्रांस की क्रांति का प्रमुख कारण वहाँ को दोषपूर्ण भूमि व्यवस्था एवं अन्यायपूर्ण कर प्रणाली हो थी।

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